________________
प्राचार्य यक्षदेवरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् २१८
वक्त गया से पाटलिपुत्र एक राज पथ था। इसी के निकट गोरखगिरि नामक स्थान था । छोटे नागपुर होते हुए खारवेल ने गोरखगिरि ( बडवर ) पर धावाकिया । गोरखगिरि वर्तमान रामागया के समीप एक प्रसिद्ध दुर्ग था। राजधानी पाटलीपुत्र को दक्षिण दिशा में संरक्षित करने के लिये यह दुर्ग बनाया गया था।
उस समय पाटलिपुत्र में पुष्यमित्र या बृहस्पति मित्र मगध साम्राज्य के सम्राट् थे, उस समय मगध विपुल बलशाली था। तिस पर उसमें पुष्यमित्र सरीखे पराक्रमी योद्धा सम्राट् थे, जिनने कि अश्वमेध यज्ञ कर समग्र आर्यावर्त में अपने को चक्रवर्ती राजा बनाया था । उनने प्रीक सम्राट् डेमिटूिअस तथा मेनेडर को ससैन्य परास्त कर ग्रीक लोगों को आर्यावत से निकाल बाहर किया था। इस प्रकार एक प्रतापी सम्राट से युद्ध करना कोई सहज काम न था। किंतु खारवेल एक साहसी राजा थे । जैसेही पुष्यमित्र ने सुना कि खारवेल ने गोरखगिरि दुर्ग को घेर लिया है वे पाटलिपुत्र छोड़ मथुरा में सैन्य सजाकर उनकी राह देखने लगे। किंतु खारवेल इस वक्त गोरखगिरि से ही कलिंग वापिस चले आये ।
राजा खारवेल भारत में एक प्रसिद्ध चक्रवर्ती राजा होना चाहते थे। किंतु मगध सम्राट् पुष्य मित्र को जीते बिना वे अपनी इच्छा की पूर्ति नहीं कर सकते थे। इसी उद्देश्य से खारवेल ने एक मरतबे फिर भी भारी सैन्य संगठन और लड़ाई की तय्यारी कर अपने राजस्व के द्वादश वर्ष में ( १६१ स. ई. पू.) युद्ध करने चले । अपने राजत्त्व के दशम वर्ष में भी ये एक बार इसी उद्देश्य से युद्ध करने निकले थे, किन्तु इस समय की यात्रा ही ऐतिहासिक घटना में सर्व प्रधान है। इस बार ये पहले के समान छोटे नागपुर की तरफ से न जाकर महानदी के रास्ते से उत्तर पश्चिम की ओर रवाना हुए। खारवेल ने सीधे मगध को न जाकर उत्तरापथ राज्यों पर ( उत्तर पश्चिम सीमांत राज्य ) धावा किया । और उन राज्यों को जीतते गये ( अनुमान होता है कि वे पाटलिपुत्र आते तक भी गंगा नदी पार नहीं हुए थे ) वे मध्यभारत होते हुए भी पंजाब तक अग्रसर हुए। उत्तरापथ के किसी भी राजा ने इनका सामना नहीं किया । और वे इन समस्त देशों को अपने प्राधीन कर मगध की ओर रवाना हुए । रास्ते में गंगा नदी पार होकर हिमालय पर्वत के नीचे नीचे आते हुए गंगा के उत्तर किनारे मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पहुँचे । पाटलिपुत्र के समीप हाथियों से गंगा नदी पार कर प्रबल प्रतापी पुष्यमित्र को राजधानी में घेर लिया। इस वक्त वीर कलिंग सेनाओं के विपुल पराक्रम को देखकर पाटलिपुत्र ही नहीं समप्र मगध देश भयभीत होगया। उस समय मगध भारत में सर्व प्रधान और बलवान राज्य था। राजधानी घेरने की तो बात ही दूर इस समय तक मगध पर किसी ने अाक्रमण भी नहीं किया था । खारवेल का यह आक्रमण ही सर्व प्रथम था, इससे मगध निवासियों का भयभीत होना कोई आश्चर्य जनक बात नहीं है । राजा खारवेल ने इस युद्ध में पुष्यमित्र को पराश्त कर पाटलिपुत्र को अपने अधिकार में कर लिया और अंग व मगध देश से विपुल धन अपने हस्तगत किया। और उत्कल (कलिंग) देश से जिन जैनमूर्तियों को नंदराजा मगध में ले गया था, राजा खारवेल उन मूर्तियों को अपनी राजधानी में वापस ले आये । पुष्यमित्र के पराजय होने पर भारतवर्ष में मगध के बदले कलिंग साम्राज्य विस्तार हुआ । एक ही वर्ष में खारवेल समप्र भारतवर्ष को विजय कर पंजाब से हिमालय के नीचे नीचे आकर मगध देश को जीतकर और उसे लटते हुए अपनी राजधानी में वापिस आये । राजा खारवेल के अदम्य उत्साह बल तथा साहस को देखकर ही उनकी तुलना नेपोलियन बोनापार्ट से की जाती है।
३७३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org