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[२७] बाद का मूल मिलता है। + + + सृष्टिकी आदिसे जैनमत प्रचलित है।"
(सर्वतन्त्रस्वतंत्र सत्संप्रदायाचार्य स्वाभिराममिश्र शास्त्री.) (१६) वर्तमान मुस्लीम धर्मकी उत्पत्ति हजरत मुहम्मद साहब पैगंबरसे हुई मानी जाती है. मुसलमानों का अरबी, फारसी, उर्दू वगैरह भाषा का साहित्य मुहम्मद साहेब के वक्तका अथवा इनके पिछले वक्त का है, मुहम्मद साहबको हुए पूरे १४०० वर्ष अभी तक नही हुए हैं, इससे यह बात साफ तौरसे सिद्ध है कि मुसल्मानी किताबों में सृष्टि के आदि पुरुष की (आदमबाबाकी ) जो कथा लिखी गई है वह जैनों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवके चरित्र के साथ संबंध रखती है, क्योंकि जैनशास्त्रों में उनको प्रथमतीर्थकर, आदिनाथ
आदिप्रभु, श्रादिमपुरुष. युगादिम वगैरह अनेक नामों से उल्लिखित किग है, 'श्रादम' शब्द 'आदिम' शब्दका हूबहू रूपान्तर है, जैनों में 'आदिम' शब्द आदि तीर्थकरके अर्थ में दो हजार वर्ष पहिले से प्रयुक्त हुआ दृष्टिमें आता है तब मुसलमानों की धार्मिक किताबों में उसका प्रयोग बहुत पीछे हुआ है. (जैनधर्म की महत्ता)
(१७) रायबहादुर पूर्णेन्दु नारायणसिंह एम० ए० बांकीपुर लिखते हैं-जैनधर्म पढ़ने की मेरी हार्दिक इच्छा है क्योंकि मैं ख्याल करता हूँ कि व्यवहारिक योग्याभ्यास के लिये यह साहित्य सबसे प्राचीन ( Oldest ) है यह वेद की रीति रिवाजों से पृथक् है इसमें हिन्दू धर्म से पूर्व की आत्मिक स्वतन्त्रता विद्यमान है, जिसको परम पुरुषों ने अनुभव व प्रकाश किया है यह समय है कि हम इसके विषय में अधिक जानें।
(१८) महामहोपाध्याय पं० गंगानाथमा एम० ए० डी० एल. एल. इलाहाबाद-'जब से मैंने शंकराचार्य द्वारा जैन सिद्धान्त पर खंडन को पढ़ा है, तब से मुझे विश्वास हुआ कि इस सिद्धान्त में बहुत कुछ है जिसको वेदान्त के प्राचार्य ने नहीं समझा, और जो कुछ अब तक मैं जैन धर्म को जान सका हूँ उससे मेरा यह विश्वास दृढ़ हुआ है कि यदि वह जैन धर्म को उसके असली प्रन्थों से देखने का कष्ट उठाता तो उनको जैन धर्म से विरोध करने की कोई बात नहीं मिलती।
(१९) श्रीयुत् नैपालचन्द राय अधिष्ठाता ब्रह्मचर्याश्रम शांतिनिकेतन बोलपुर-मुझको जैन तीर्थंकरों को शिक्षा पर अतिशय भक्ति है।
(२०) श्रीयुत् एम० डी० पाण्डे थियोसोफिकल सोसाइटी बनारस मुझे जैन सिद्धान्त का बहुत शौक है, क्योंकि कर्म सिद्धान्त का इसमें सूक्ष्मता से वर्णन किया गया है।
___(२१) इन्डियन रिव्यू के अक्टोबर सन् १९२० ई० के अंक में मद्रास प्रेसीडेन्सी कालेज के फिलोसोफिना प्रोफेसर मि० ए० चक्रवर्ती एम. ए. एल. टी ए. लिखित “जैन फिलोसिफी" नामके आर्टि कल का गुजराती अनुवाद महावीर पत्र के पौष शुक्ला १ संवत २४४८ वीर संवत्के अंकमें छपा है उसमें से कुछ वाक्य उद्धृत ।
(२२) रिषभंदेवजी 'आदिजिन' 'आदीश्वर' भगवानना नामे पण श्रोलखाय छे ऋग्वेदना सूकतीमां तेमनो बहत तरीके उल्लेख थएलो. छे जैनों तेमने प्रथम तीर्थकर माने छे. बीजा तीर्थंकरो बधा क्षत्रियोज हता.
(२३) भारत मत दर्पण नाम की पुस्तक गजेन्द्रनाथ पंडित उर्फ रायप्रपन्नाचार्यने सामाजी प्रेस बड़ोदा में छपा कर प्रकाशित की है। उसके पृष्ट १० की पंक्ति ९ से १४ में लिखा है कि पूज्यपाद बाबू कुष्णनाथ बेनरजी अपने 'जिन जम्म' ( जेनिजम) में लिखा है कि भारत में पहिले १०००००००० जैन थे सी मत से निकल कर बहुत लोग दूसरे धर्ममें जानेसे इनकी संख्या घट गई, यह धर्म वहुत प्राचीन है इस मत के नियम बहुत उत्तम है इस मत से देशको भारी लाभ पहुँचा है।
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