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वि० पू० १८२ वर्ष ।
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
कनकपुर में राज्याभिषेक हुआ। शोभनराय जैनधर्म का उपासक था। वह कलिंग देश में तीर्थ स्वरूप कुमार पर्वत पर यात्रा कर के उत्कृष्ट श्रावक बन गया । ___ शोभनराय के वंश में पाँचवी पीढ़ी में चंडराय नामक राजा हुआ जो महावीर के निर्वाण से १४९ वर्ष बीतने पर कलिंग के राज्यासन पर बैठा था।
चंडराय के समय में पाटलीपुत्र नगर में श्राठवाँ नंद राजा राज्य करता था, जो अभिमानी और अति लोभी था। वह कलिंग देश को नष्ट भ्रष्ट करके तीर्थ स्वरूप कुमारगिरी पर राजा श्रीणिक के बनवाये हुये जिनमन्दिरों को तोड़ उसमें रखी हुई ऋषभदेव की सुवर्णमयी प्रतिमा को उठा कर पाटलीपुत्र में ले आया। इसके बाद शोभनराय की आठवीं पीढी में क्षेमराज नामक कलिंग का राजा हुआ । वीर निर्वाण के बाद जब २२७ वर्ष पूरे हुए तब कलिंग के राज्यासन पर क्षेमराज का अभिषेक हुआ और निर्वाण से २३९ वर्ष बीतने पर मगधाधिपति अशोक ने कलिंग पर चढ़ाई कीर और वहां के राजा क्षेमराज को अपनी आज्ञा मनाकर वहां पर उसने अपना गुप्त संवत्सर चलाया।
महावीर निर्वाण से २७५ वर्ष के बाद क्षेमराज का पुत्र वुड ढराज३ कलिंगदेश का राजा हुआ। वुड ढराज जैनधर्म का परम उपासक था । उसने कुमारगिरि और कुमारीगिरि नाम के दो पर्वतों पर श्रमण और निम्रन्थियों के चातुर्मास्य करने योग्य ११ गुफाएं खुदवाई थीं।
भगवान महावीर के निर्वाण को जब ३०० वर्ष पूरे हुए तब वुड्ढराय का पुत्र भिक्खुराय कलिंग का राजा हुआ। भिक्खुराय के नीचे लिखे अनुसार तीन नाम कहे जाते हैं:
निर्मन्थ-भिक्षुओं की भक्ति करनेवाला होने से उसका एक नाम 'भिक्खुगय' था । पूर्व परंपरागत 'महामेघ' नामक हाथी उसका वाहन होने से उसका दूसरानाम 'महामेघवाहन' था। उसकी राजधानी समुद्र के किनारे पर होने से उसका तीसरा नाम 'खारवेलाधिपति' था।
भिक्षुराज अतिशय पराक्रमी और अपनी हाथी आदि की सेना से पृथ्विीमंडल का विजेता था।
पन्यासजी ने मूल पट्टावली का अनुवाद के साथ अपनी ओर से फुट नोट भी दिये हैं वे भी यहां पर ज्यों के त्यों दे दिये जाते हैं कि आपके भाव ज्यों के स्यों जान लिये जाय ।
(१) हाथीगुफा वाल खारबेल के शिलालेख में भी पंक्ति १६ वीं में 'खेमराजा' इस प्रकार बारबेल के पूर्वज के तौर से क्षेमराज का नामोल्लेख किया है।
(२) कलिंग पर चढ़ाई करने का जिक्र अशोक के शिलालेख मे' भी है । पर वहां पर अशोक के राज्याभिषेक के आठवें वर्ष के बाद कलिंग विजय का उल्लेख है । राज्य प्राप्ति के बाद ३ अथवा ४ वर्ष पीछे अशोक का राज्याभिषेक हुआ मान लेने पर कलिंग का युद्ध भ्रशोक के राज्य के १२-१३ वर्ष में भायगा। थेरावली में अशोक की राज्य प्राप्ति निर्वाण से २०९ वर्ष के बाद लिम्बी है अर्थात २१० में इसे राज्याधिकार मिला और २३९ में उसने कलिंग विजय किया । इस हिसाब से कलिंग विजय वाली घटना अशोक के राज्य के ३० ३ वर्ष के अंत में आती है, जो कि शिलालेख से मेल नहीं खाती।
(क) अशोक के गुप्त संवत्सर चलाने की बात ठीक नहीं जंचती । मालग होता है कि थेराबली लेखक ने अपने समय में प्रवलित गुप्त साजानों के चलाये गुप्त संवत् को अशोक चलाया हुआ मान लेने का धोखा खाय है। इसी उल्लेख से इसकी अति प्राचीनता के सम्बन्ध में भी शंका उत्पन्न होती है।
(३) वुड्ढराज का नाम भी स्वारबेल के हाथीं गुंफा वाले लेख में 'वुड्ढराना का इस प्रकार उल्लेख है।
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