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________________ [ २४ ] स्व-परमत के शास्त्रों से जैनधर्म की प्राचीनता प्रमाणित हो गई पर वर्तमान इतिहास जैनधर्म के लिये क्या कहता है ? पाठकों की जानकारी के लिये ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर जैनधर्म की प्राचीनता कहां तक सिद्ध होती है इस पर विचार किया जाता है । वर्तमान युग में इतिहास की शोध खोज से विद्वानों ने इ० सं० पूर्व नौसौ से एक हजार वर्ष से भारत का इतिहास प्रारम्भ होना सिद्ध किया है तब जैनधर्म के अन्तिम तीर्थङ्कर भ० महावीर और आपके पुरागामी भ० पार्श्वनाथ को इतिहास पुरुष होना स्वीकार किया है जिनका समय इ० सं० पू० नौसौ वर्ष के आस पास का है। इनके अलावा हाल में प्रभासपट्टन में भूमि खुदाई का काम करते एक ताम्रपत्र भूगर्भ से मिला है। जिसमें लिखा है कि " रेवा नगर के राज्य का स्वामि सु००० जाति के देव 'नेबुशदनेकर' हुए वे यदुराज (श्री कृष्ण ) के स्थान द्वारका आया उसने एक मन्दिर सर्व देव नेमि जो स्वर्ग सदृश रेवत ( गिरनार ) पर्वत के देव हैं उसने मन्दिर बनाकर सदैव के लिये अर्पण किया । " जैनपत्र वर्ष ३५ अं ६ ९ ताः ३-१-३७ से" यद्यपि इस ताम्रपत्र का 'नेबुशदनेकर' राजा का समय इ. सं. पू. छटी शताब्दी का बतलाया जाता है इस विषय का एक विस्तृत लेख महावीर विद्यालय का रूपमहोत्सव अंक में प्रकाशित हुआ है, जिससे पाया जाता है कि इ० सं० पू० छटी शताब्दी में गिरनार पर्वत पर भ० नेमिनाथ का मन्दिर विद्यमान था और वे नेमिनाथ जैनों के बावीसवें तीर्थङ्कर थे जो श्रीकृष्ण और अर्जुन के समकालीन हुए थे। हाँ किसी जमाना में भ० महावीर और पार्श्वनाथ को विद्वान लोगों ने कल्पनिक व्यक्ति कह कर इतिहास में स्थान नहीं दिया था पर जब शोध खोज ने उक्त दोनों महापुरुषों को ऐतिहासिक पुरुष होना प्रमाणित कर दिया इसी प्रकार आज भ० नेमिनाथ को ऐतिहासिक पुरुष नहीं भी माना जाय पर भविष्य में ठीक खोज होने पर वे ऐतिहासिक पुरुषों में आसन प्राप्त कर ही लेगा । और इसके कई कारण भी हैं जैसे पंजाब और सिन्ध की सरहद भूमि के अन्दर से 'हरप्पा तथा मोहनजाडरो' नामके दो विशाल नगर निकले हैं, उन प्राचीन नगरों से ऐसे २ पदार्थ उपलब्ध हुए हैं कि विद्वान उनको पांच से दश हजार वर्ष जितने प्राचीन बतलाते हैं । जब जैनप्रन्थों में सिन्ध प्रान्त की राजधानी वीतभय पट्टन का उल्लेख मिलता है वहाँ पर राजा उदाइ राज करता था राजा उदाइ दीक्षित होने के बाद देव का कोप होने से धूल की वृष्टि होकर पट्टन दट्टन होगई थी शायद वही नगर भूमि से निकला हो खैर ज्यों ज्यों पुरास्व की शोध खोज होती जायगी त्यों २ इतिहास पर अपूर्व प्रकाश पड़ता जायगा । जैनधर्म की प्राचीनता के विषय में जिन जिन पुरात्व विशारदों को अपनी शोध खोज में जैनधर्म की प्राचीनता के प्रमाण मिले हैं उन्होंने बिना किसी पक्षपात के जनता के सामने रख दिये हैं जिनके अन्दर से कतिपय प्रमाण यहाँ पर उद्धृत कर दिये जाते हैं । (१) “पार्श्व ए ऐतिहासिक पुरुष हता ते ज्ञात तो बधी रीते संभवित लागे छे. केशी के जे महावीरना समयमां पार्श्वना संप्रदायनो एक नेता होय तेम देखाय छे. ( हरमन जेकोबी ). (२) सबसे पहिले इस भारतवर्ष में ऋषभदेव नाम के महर्षि उत्पन्न हुए, वे दयावान् भद्रपरिणामी, पहिले तीर्थकर हुए, जिन्होंने मिथ्यात्व अवस्था को देखकर सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग् चारित्र रुपी मोक्षशास्त्र का उपदेश किया, बस यह ही जिनदर्शन इस कल्प में हुआ, इसके पश्चात् श्रजितनाथ से Jain E माहीत तेईस तीर्थकर अपने अपने समय में मानी जीवों का मोह अंधकार नाश करते रहे, 23 ibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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