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आचार्य कक्कमरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ११२
सम्राट् सम्प्रति ने अपने धर्म प्रचार के हित कितना प्रयता किया होगा, पाठक उपरोक्त लेख से अच्छी तरह समझ गये होंगे । फिर भी वह इतना करके चुप नहीं बैठ गया पर उसने कई पाषाण की चट्टानों पर अपनी आज्ञाओं को अंकित भी करवा दी थीं कि जिससे एक तो जनता हमेशा उसको पढ़ती रहे और अपना जीवन धर्ममय बनाले। दूसरे धर्मलिपियें खुदवाने का मतलब है कि यह चिरकाल रहें जिससे भविष्य की प्रजा भी अपना जीवन धार्मिक कार्यों में व्यतीत करे।
सम्राट सम्प्रति ने उन लिपियों में किसी धर्म का नाम न लिखवा कर ऐसे धर्म नियमों को पालन करने का निर्देश किया है कि जिसमें सब धर्मों का समावेश हो सकता है । कारण, जीव हिंसा न करना, झूठ न बोलना, चोरी न करना, सदाचार रखना अपनी मान्यता के अलावा दूसरे के धर्म की निन्दा नहीं करना श्रादि आदि जिसमें किसी धर्मवालों का विरोध हो ही नहीं सकता । यही कारण है कि सम्राट् सम्प्रति के धर्म का जनता पर जल्दी और गहरी तादाद में असर हो गया।
सम्राट् सम्प्रति की लिपियां उस जमाने की पाली आदि भाषाओं में हैं कि जिसको साधारण मनुष्य पढ़ कर उसके भाव को नहीं समझ सकता है अतः कई हिन्दी भाषा भाषी सज्जनों ने उन लिपियों का हिन्दी अनुवाद कर दिया है जो अशोक के धर्म लेख के नाम से पुस्तक के रूप में मुद्रित हो चुकी है, उसके अन्दर से कतिपय लेख नमूने के तौर पर यहाँ उद्धृत कर दिये जाते हैं ।
१-पंचम स्तम्भलेख-देवताओं के प्रिय, प्रियदर्शी राजा ऐसा कहते हैं कि राज्याभिषेक के २६ वें वर्ष बाद मैंने इन प्राणियों का वध करना सब के लिये सर्वदा मना कर दिया है यथा-सुग्गा, मैना, अरुण, चकोर हंस, नान्दीमुख, गेलाट, जतुका (चमगीदड़) अम्बाकर्प लिका, दुडि (कछुवी) बे हड्डी मछली, वेदवेयक ( जीवंजीवक ) गंगापुटक, संकुजमत्स्य, कछुआ, साही, पर्णशश, बारह सिंहा, सांड़,
ओकपिण्ड मृग सफेद कबूतर, गाँव के कबूतर और सब तरह के सब चौपाये जो न तो किसी प्रकार उपभोग में आते हैं और न खाये जाते हैं । गाभिन या दूध पिलाती हुई बकरी, भेड़ और सुअरी तथा इनके बच्चों को जो ६ महीने तक के हों न मारना चाहिये । मुर्गों को बधिया न करना चाहिये । जीवित प्राणियों के साथ भूसी को न जलाना चाहिये। अनर्थ करने के लिये या प्राणियों की हिंसा करने के लिये वन में आग न लगानी चाहिये । एक जीव को मार कर दूसरे जीव को न खिलाना चाहिये । प्रति चार चार महीने की तीन ऋतुओं की तीन पूर्णमासी के दिन, पौष मास की पूर्णिमा के दिन, अष्टमि, चतुर्दशी, अमावस्या और प्रतिपदा के दिन तथा प्रत्येक उपवास के दिन मछली न मारना चाहिये न बेचना चाहिये । इन सब दिनों में हाथियों के वन में तथा तालाब में कोई भी दूसरे प्रकार के प्राणी न मारे जाने चाहिये । प्रत्येक पक्ष की अष्टमी, चतुर्दशी, अमावश्या वा पूर्णिमा तथा पुष्य और पुनर्वसु नक्षत्र के दिन, और प्रत्येक चार चार महीने के त्योहारों के दिन बैल को न दागना चाहिये तथा बकरा, भेड़ा, सुअर और इसी तरह के दूसरे प्राणियों की, जो दागे जाते हैं न दागना चाहिये । पुष्य और पुनर्वसु नक्षत्र के दिन, प्रत्येक चातुर्मास्या की पूर्णिमा के दिन और प्रत्येक चातुर्मास्य के शुक्लपक्ष में घोड़े और बैल को न दागना चाहिये । राज्याभिषेक के बाद २६ वर्ष के अन्दर मैने २५ बार कारागार से लोगों को मुक्त किया है।
इस लेख को पढ़ने से इतना तो निश्चय सहज ही में हो सकता है कि इस लेख के लिखाने वाला
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