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________________ वि० पू० २८८ वर्ष ] [ भगवान् पाश्वनाथ की परम्परा का इतिहास मगध के सिंहासन पर सम्प्रति का राज्याभिषेक अशोक की मृत्यु के बाद तत्काल ही हुआ हो तो इसमें संदेह को स्थान नहीं मिल सकता है । सम्राट् सम्प्रति के शासन में राज के प्रबन्ध एवं व्यवस्था सम्राट चन्द्रगुप्त एवं अशोक से कम नहीं पर किसी अपेक्षा चढ़ बढ़ के थी क्योंकि इसमें जैसी वीरता थी वैसी ही उदारता भी एक नम्बर की थी। जनता के हित के लिये इसने अनेक प्रकार की सुविधायें कर दी थीं । इतना ही क्यों पर इस बात के लिये सम्राट ने अपने जीवन का ध्येय ही बना लिया था। यही कारण था कि जनता इस भूपति को खूब चाहती थी और वह सब के लिये बहुत प्रिय भी बन चुका था यही कारण है कि श्राप प्रियदर्शी नाम से प्रसिद्ध थे। अतः इनके राज प्रबन्ध एवं व्यवस्था के लिये दुहराने की आवश्यकता नहीं हैं। कई लोगों का यह मत है कि सम्राट अशोक के बाद मौर्य राज में शिथिलता आ गई थी। राज की नींव कमजोर पड़ गई थी कई राजाओं ने स्वतन्त्र हो कर अपने २ राज्य पर फिर से अधिकार जमाना शुरु कर दिया था इत्यादि । परन्तु यह कथन सम्राट् सम्प्रति के समय का नहीं पर वृहद्रथ के शासन काथा जिसको हम आगे चल कर बतावेंगे । सम्प्रति के समय भारत का राजतन्त्र सुव्यवस्थित एवं एक झंडे के नीचे था। __ यह केवल मेरा ही अनुमान नहीं है परन्तु सम्प्रति के शिलालेखों में भी इस विषय का विस्तृत वर्णन मिलता है जिसको मैं आगे चल कर लिखूगा तथा डाक्टर त्रिभुवनदास लेहरचन्द अपने प्राचीन भारतवर्ष का इतिहास नामक ग्रन्थ में इस विषय को अच्छी तरह से प्रमाणित कर दिया है कि सम्राट् सम्प्रति ने अपने राज का विस्तार केवल भारत ही नहीं पर भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में भी किया था जो कि चन्द्रगुप्त और अशोक भी नहीं कर पाये थे। सम्राट् सम्प्रति के विषय में सम्राट ने अपनी युवराजावस्था में भारत के समस्त गजाओं को करदाता बना दिया; और अष्ठक के निकट आकर सिन्ध नदी पार करने के बाद अफगानिस्तान के मार्ग से ईरान, अरब और मिस्र आदि देशों पर अधिकार किया और उनसे 'कर' लिया जिस प्रकार अजातशत्रु राजा के आधीन १६००० करद राज्य थे, उसी प्रकार इनकी संख्या भी उतनी ही थी। इस प्रकार जब वे दिग्विजय कर स्वदेश वापस लौटे तब सम्राट अशोक के मुंह से ये उद्गार निकले कि "मेरे पितामह चन्द्रगुप्त तो केवल भारत के ही सम्राट थे, किन्तु मेरा पौत्र सम्प्रति तो संसार भर का सम्राट् है।" । ___ इन शब्दों से चन्द्रगुप्त, अशोक और प्रियदर्शिन (सम्प्रति) इन तीनों के राज विस्तार को अलग २ गिनने के साधन मिल सकता है। सम्राट सम्प्रति की राजधानी-यह तो आप पहिले ही पढ़ चुके हैं कि सम्राट अशोक ने अपने पुत्र कुनाल को उज्जैन भेजा था । सम्प्रति का जन्म उज्जैन में ही हुआ और सम्प्रति को युवराज पद देकर उज्जैन भेजा था और सम्प्रति ने युवराज पद में सोराष्ट्र और दक्षिणादि प्रान्तों को विजय भी उज्जैन में रह कर ही किया । अतः उज्जैन की भूमि सम्प्रति को वल्लभ होना स्वाभाविक ही था परन्तु अशोक के अन्त समय सम्प्रति पाटलीपुत्र में था और अशोक के मृत्यु के बाद उनका राज्याभिषेक मगध की गदी पर पाटली Jain Edu a temational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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