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वि० पू० २८८ वर्ष]
[भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
को प्राप्त था।........"चंद्रगुप्त के समय में राज्य की ओर से अनेक चिकित्सा होते थे। उनके साथ भैषज्यागार ( Store-Rooms ) भी होते थे। ... 'मानव चिकित्सा के अलावा पशु चिकित्सा का भी प्रबंध था।... "सम्राट चंद्रगुप्त के समय में इस बात के लिये विशेष प्रयत्न किया जाता था कि रोग होने ही न पावें । असावधानी उपेक्षा आदि रखने पर चिकित्सकों को भी दण्ड दिया जाता था।"
किंतु आज हम उक्त कथन के बिलकुल विपरीत देखते हैं । जितने अधिक चिकित्सालय खुलते जा रहे हैं उतने ही अधिक दिनदूने रात चौगुने--रोगी बढ़ते जा रहे हैं । नये २ रोग उत्पन्न हो रहे हैं। चिकित्सालयों में रोगियों की संख्या घटने के बजाय प्रतिवर्ष बढ़ती रही है । इसका कारण केवल यही है कि राज्य की ओर से “रोग होने ही न पावें" जैसा चन्द्रगुप्त के शासनकाल में प्रवन्ध था वैसा इस समय कोई नियम ही नहीं है। जब पाड़ स्थिर है तब पत्तों के पतझड़ होने से लाभ क्या ? व्यापारी वर्ग नकली, हानिकारक, मिलावटी, खराब वस्तु नहीं बेच सकते थे। सफ़ाई का पूरा ध्यान रखा जाता था । बाजार, गली, मोहल्लों में कूड़ा, पेशाब पास्त्राना, मरे हुये साँप, चूहे तथा बड़े जानवरों को डाल देने पर दण्ड मिलता था।
सार्वजनिक संकटों का निवारण-सम्राट् चन्द्रगुप्त के शासनकाल में दुर्भिक्ष, अग्नि, बाढ़ आदि सार्वजनिक संकटों के निवारण के लिये अनेक प्रकार से उपाय किया जाता था।"
आवागमन के साधन-"चन्द्रगुप्त का साम्राज्य बहुत विस्तृत था । इसलिये आवागमन के लिये उत्तम साधनों और मार्गों की बहुत आवश्यकता थी। मार्गों का प्रबन्ध सरकार ने एक पृथक विभाग के सुपुर्द रक्खा था । जलमार्ग और स्थलमार्ग दोनों का उत्तम प्रबन्ध था।
जलमार्ग-मौर्य चन्द्रगुप्त के शासनकाल में नौकाओं और जहाजों का बहुत अधिक चलन था। नौकानयन-शास्त्र की बहुत उन्नति हो चुकी थी। उस समय कितने ही प्रकार के जहाज़ होते थे। समुद्र से मोती, शंख आदि एकत्रित करने वाले जहाज़ भी थे। समुद्र में आई हुई विपत्तियों और डाकुओं के आक्रमण आदि से रक्षा के भी अच्छे अच्छे उपाय थे।
स्थल मार्ग--सड़कों का उत्तमोत्तम प्रबन्ध था जो ऊपर लिख आये हैं।
रीति-रिवाज, स्वभाव, सभ्यता--' मौर्य-कालीन भारतीयों के रीति, रिवाजों के सम्बन्ध में यूनानी लेखकों के कुछ विवरण उद्धृत करना भी आवश्यक प्रतीत होता है:
'भारतीय लोग किफायत के साथ रहते विशेषतः जब कि वे कैम्प में हों।" "भारतीय लोग अपने चालचलन में सीधे और मितव्ययी होने के कारण बड़े सुखी रहते हैं।"
"उनके कानून और व्यवहार की सरलता इससे अच्छी तरह प्रमाणित होती है कि वे न्यायालय में बहुत कम जाते हैं। उनमें गिरवी और धरोहर के अभियोग नहीं होते और न वे मुहर व गवाह की ज़रूरत रखते हैं। वे एक दूसरे के पास धरोहर रखकर आपस में विश्वास करते हैं । अपने घर व सम्पत्ति, वे प्रायः अरक्षित अवस्था में ही छोड़ देते हैं" ये बातें सूचित करती हैं कि उनके भाव उदार थे।
"अपने चाल की साधारण सादगी के प्रतिकूल वे बारीकी और नफासत के प्रेमी होते हैं। उनके
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