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आचार्य कक्कर का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ११२
चन्द्रगुप्त की राजसभा में रहता था उसने जो अपनी आखों से देखकर जो हाल लिखा है उसको यहां उद्धृत कर दिया जाता है ।
चन्द्रगुप्त की राजधानी - अर्थात् पाटलिपुत्र नगर सोन और गङ्गा नदियों के संगम पर बसा हुआ था । आज कल इसके स्थान पर पटना और बांकीपुर नाम के शहर बसे हुये हैं । प्राचीन पाटलिपुत्र भी आजकल की तरह लम्बा बसा हुआ था उसकी लम्बाई उन दिनों में ९ मील और चौड़ाई १॥ मील थी उसके चारों ओर काष्ट की बनी हुई एक दीवार थी, जिसमें ६४ फाटक और ५७० बुर्ज थे। दीवार के चारों ओर एक गहरी परिखा या खाई थी, जिसमें सोन नदी का पानी भरा रहता था। राजधानी में चन्द्रगुप्त के महल अधिकतर काष्ट के बने हुये थे, पर शान शौकत में वे फारस के राजाओं के महलों से भी बढ़कर थे ।
चन्द्रगुप्त का दरबार—बहुमूल्य बस्तुओं से सुसज्जित था । वहाँ रखे हुए सोने चाँदी के बर्तन और खिलौने जड़ाऊ मेज़ और कुर्सियाँ तथा कीनखाब के कपड़े देखने वालों की श्रंख में चकाचौंध पैदा करते थे। जब कभी कभी चन्द्रगुप्त बड़े बड़े अवसरों पर राजमहल के बाहर निकलता था तो वह सोने की पालकी पर चढ़ता था । उसकी पालकी मोती की मालाओं से सजी रहती थी । जब उसे थोड़ी ही दूर जाना होता था तो वह घोड़े पर चढ़कर जाता था, पर लम्बे सफर में वह सुनहरी भूलों पर सजे हुये हाथी पर चढ़ता था । जिस तरह आजकल बहुत से राजाओं और नबाबों के दरबार में मुर्गी, बटेर; गढ़े और साँड़ वगैरह की लड़ाई में दिलचस्पी ली जाती है, उसी तरह चन्द्रगुप्त भी जानवरों की लड़ाई से अपना मनोञ्जन करता था । पहलवानों के परस्पर युद्ध भी उसके दरवार में होते थे। जिस तरह आजकल घोड़ों की दौड़ होती है और उसमें हजारों की बाज़ी लगाई जाती है उसी तरह चन्द्रगुप्त समय में भी बैल दौड़ाये जाते थे और वह उस दौड़ को बड़ी रुचि से देखता था आजकल की तरह उस समय भी लोग दौड़ में बाज़ी लगाते थे । दौड़ने की जगह हज़ार गज़ के घेरे में रहती थी और एक घोड़ा तथा उसके उधर उधर दो बैल एक रथ को लेकर दौड़ते थे १
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चन्द्रगुप्त की शासन-पद्धति -- मगास्थनीज़ तथा सैनिक व्यवस्था और शासन पद्धति का जो पता लगता है उसे एम० ए० ने 'अशोक के धर्मलेख " नामक पुस्तक के तृतीय श्रवलोकनार्थ उद्धृत किया जाता है:
कौटिलीय अर्थशास्त्र से चन्द्रगुप्त मौर्य की अत्यन्त संक्षेप में श्रीयुत जनार्दन भट्ट अध्याय में दिया है उसे यहाँ पाठकों के
सैनिक व्यवस्था - चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना प्राचीन प्रथा के अनुसार चतुरंगणी थी, किन्तु उसमें अल सेना की एक विशेषता थी । चन्द्रगुप्त की सेना में हाथी ९०००, रथ ८०००, घोड़े ३००००, और पैदल सिपाही ६०००००, थे । हरएक रथ पर सारथी के अलावा दो धनुर्धर और हर हाथी पर महावत httड़कर तीन धनुर्धर बैठते थे । इस तरह कुल सैनिकों की संख्या ६००:०० पैदल, ३००००, घुड़सवार ३६००० गजारोही और २४००० रथी, अर्थात् कुल मिलाकर ७२०००० थी । इन सबों को राजखजाने से वेतन नियमित रूप से मिला करता था ।
सैनिक मण्डल - सेना का शासन एक मण्डल के अधीन था। इस मण्डल में ३० सभासद थे, जो ६ विभाग में विभक्त थे । प्रत्येक बिभाग में पाँच सभासद होते थे । प्रथम विभाग में पाँच सभासद होते
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