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आचार्य ककसरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ११२
उत्तर दिया कि 'क्लोक सेज दी टन, टन, टन ऐण्ड विलिंगटन भी दी लार्ड औफ लण्डन" ( घड़ी कहती है टन, टन, टन और लण्डन का लार्ड बनेगा विलिंगटन ) यह भविष्यवाणी सत्य निकली । बालकों के हथियारों की अड़चन डालने पर बालक चन्द्रगुप्त का यह कहना कि “यह राजा चन्द्रगुप्त की आज्ञा है" कितना उत्तेजक, आज्ञाकारक, आत्मविश्वासक तथा मनोबल को प्रकट करने वाला है। चन्द्रगुप्त ने खेल खेल में बतला दिया कि 'संसार को चन्द्रगुप्त की आज्ञा उलङ्घन करने का साहस न होगा । वह अत्याचारियों का संहारक और अपने पांव पर खड़ा होने वाला असम्भव को सम्भव कर दिखाने वाला स्वावलम्बी वीर होगा । अबोध शिशु चन्द्रगुप्त के इस चमत्कारिक प्रभावोत्पादक क्रीड़ा को उसके बाल्य-सखा क्या पर खास समझदार ही समझ सकते थे । स्वयं चन्द्रगुप्त भी कस्तूरी वाले हिरन की भांति अपने जौहर से अनभिज्ञ था सिंहनी का बच्चा भेड़ बकरियों में खेल रहा था।
___ ऐसी ही एक मिलती-मुलती चन्द्रगुप्त की बाल्य-क्रीड़ा का उल्लेख आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने अपने परिशिष्ट पर्व में किया है यथाः-"चन्द्रगुम अपने पड़ोस के लड़कों के साथ गांव से बाहर जाकर क्रिड़ाए करता। किसी लड़के को हाथी, किसी को घोड़ा बनाता और उनके ऊपर स्वयं चढ़ कर राजा बन कर अन्य लड़कों को शिक्षा देता तथा राजा के समान प्रसन्न होकर किसी को गांव आदि इनाम में देता एक दिन उन बालकों के क्रीड़ा करते समय कहीं से भ्रमण करता हुआ चाणक्य आ निकला । चंद्रगुप्त की उक्त चेष्टाएं देख कर उसे अत्यन्त आश्चर्य हुआ, वह परीक्षा लेने के तौर पर बोला-"महाराज ! कुछ मुझ गरीब ब्राह्मण को भी दान देना चाहिये ।"
चन्द्रगुप्त ने बाल्य-सुलभ किन्तु वीरोचित शब्दों में कहाः- "ब्रह्मदेव ! ये गाँव की गायें चर रही हैं इनमें से जितनी तुझे आवश्यक हो ले जा, मैं तुझे सहर्ष देता हूँ।"
चाणक्य मुस्कराकर बोला:-"गायें कैसे ले जाऊँ ? इनके मालकों से भय लगता है वे मारेंगे तो ?
बालक चन्द्रगुप्त ने सगर्व उत्तर दिया-मैं तुझे सहर्ष दान कर रहा हूँ निर्भय होकर इन्हें गृहण करले, मेरे होते हुए तुझे भय कैसा क्या नहीं जानता है कि 'वीरभोग्या-बसुन्धरा ?
इस प्रकार उस वालक का धैर्य देखकर चाणक्य बिस्मित होकर दूसरे बालकों से पूछने लगा कि यह किसका पुत्र रत्न है ? लड़कों ने उत्तर दिया, महाराज ! यह तो एक परिव्राजक का पुत्र है क्योंकि इसके नाना ने जब यह अपनी माता के गर्भ में ही था तब से ही इसे एक परिव्राजक को दे दिया है।" चाणक्य यह उत्तर सुनकर समझ गया कि यह तो वही बालक है जिसके गर्भ का मैंने दोहलापूर्ण किया था। चाणक्य बोला "अरे भाई ! जिस परिव्राजक को तेरे माता पिता ने तुझे समर्पण कर दिया है वह परिव्राजक मैं ही हूँ;
और राजाओं की तू यह नकल क्या करता है ! चल मेरे साथ मैं तुझे असली राज्य देकर राजा बनाऊ ।” राज्य लेने की इच्छा से चन्द्रगुप्त भी चाणक्य की अंगुली पकड़कर उसके साथ चल पड़ा"।
चाणक्य अबोध चन्द्रगुप्त के साथ उसके घर गया और कुछ भेट देकर कहा:-"मैं तुम्हारे पुत्र को सब कुछ सिखाऊंगा, उसे मेरे साथ कर दो।" तदनुसार कर दिया अतः चाणक्य चंद्रगुप्त को अपने साथ ले गया, और उसे बहुत शीघ्र युद्ध-विद्या में निपुण कर दिया, जब चन्द्रगुप्त सैन्य संचालन योग्य हो गया, तो चाणक्य ने जो रसायन सिद्धि द्वारा द्रव्य प्राप्त किया था, उस धन से कुछ सैन्य इकट्ठी की गई, और वह चंद्रगुप्त के नेतृत्व में विजय यात्रा को निकली । साहस तो महान् था किन्तु मुट्ठीभर अशिक्षित सैनिक सबल राष्ट्रों के
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