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________________ 32 सं०१९९५ का चतुर्मास ब्यावर में हुआ वहाँ भी व्याख्यान में श्री भगवती सूत्र रखा गया । पर्युषण की आराधना आम पब्लिक रायली कंपान में हुई । जैनधर्म का बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा। 33 सं० १९९६ का चातुर्मास अजमेर में हुआ । वहाँ भी व्याख्यान में श्रीभगवती सूत्र बांचा गया । और अनेक पुस्तकें छपवाई । तथा भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास का कार्य प्रारम्भ हुआ। 34 १९९७ का चतुर्मास ब्यावर में हुआ पहले ब्यावर गाँव की मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई बाद चतुर्मास में धर्म की अच्छी प्रभावना हुई । वहाँ से कापरेड़ा पधारे आपके शरीर नरम थे अतः कुछ अर्शा कापरेडा में ही बिताना पड़ा बाद फलोदीका संघ आकर आग्रह किया कि मन्दिर के प्रतिष्ठा के लिये आप फलोदी पधारें। 35 सं० १९९८ का चतुर्मास फलोदी में हुआ वहाँ भी व्याख्यान में श्री भगवतीसूत्र को बांचा । आपके विराजने से धर्म का अच्छा उद्योत हुआ । 36 सं० १९९९ का चतुर्मास पीपलिया में हुमा वहाँ भी व्याख्यान में भगवतीसूत्र बाँचा यहाँ १०० वर्षों के अन्दर आपका ही चातुर्मास हुआ था । जैन तथा जैनोतर भाईयों ने बहुत अच्छा लाभ लिया था। जीर्णोद्धार के लिये करीब ५००० हजार की चन्दा एकत्रित हुई । 37 सं० २००० में आपका चातुर्मास अजमेर में हुआ जो खास भगवान् पार्श्वनाथ के परम्परा के इतिहास रचने के ही उद्देश्य से हुआ है। आपश्री के आजतक कुल ३७ चतुर्मास हुए जिसमें ९ स्थानकवासी समुदाय में २८ संवेगी समुदाय में जिस में २ चौमासा गुजरात में २ गोड़वाड़ में शेष २४ चतुर्मास मारवाड़ में ही हुआ है इसका कारण यह है कि आपके पास योग्य साधुओं का अभाव था जिससे कि दूर प्रान्त के विहार नहीं कर सके, दसरा आपने जननी जन्मभूमि की सेवा करने की पहले से ही प्रतिज्ञा करली थी आपने जननी जन्मभूमि की सेवा करने में जैसा बहुत परिश्रम किया वैसा लाभ भी बहुत हासिल किया। यदि आप श्री इस प्रकार मरूधर में विहार न करते तो न जाने इस भूमिपर कितने भाई मूर्तिपूजक जैन रह जाते । जैसे पंजाब में पून्याचार्य श्री मात्मारामजी महाराज ने पंजाब का उद्धार किया इसी प्रकार आपश्री ने भी मारवाड़ का उद्धार करने में सफल मनोरथ हुये । किन्तु स्वामी आत्मारामजी के पास जितने साधन थे उसका एक अंश भी यदि आपके पास होता तो आप कुछ और ही काम करके बतलाते पर साधनों के अभाव में भी जो भागीरथ प्रयत्न कर इतना काम कर दिखलाया है यह आपकी एक विशेषता है। ऊपर लेखमें आपके चतुर्मास सिलसिलेवार संक्षेप से कहे गये हैं। अब थोडासा आपका किए हुए कार्य का दिग्दर्शन कराना आवश्यक है । मुनिश्री के उपदेश एवं प्रयत्न से भीरत्नमम कर ज्ञान पुष्य मालादि संस्था द्वारा पुस्तकें मुद्रित हुई पुस्तक का नाम आवृत्ति संख्या भावृत्ति संख्या १ | प्रतिमा छत्तीसी ५ २५००० | ६ पैंतीस बोल | गयवर विलास २००० संग्रह भाग १ ला | दान छत्तीसी ८ , , ,२ रा अनुकम्पा छत्तीसी ६००० ५ | प्रभमाला स्तवन ३०००। १० , , , ४ था नं. पुस्तक का नाम संप्रह ४००० विपन ४ arr0 ३०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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