SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १५ J हुए। मैरोवाग की देवभूमि के लिये आन्दोलन किया चाखिर श्रोसवाक उस देव भूमि एवं देव द्रव्य को हजम कर ही गये जिसके फल आज प्रत्यक्ष में मिल ही रहा है। तथा भरुवाग में मन्दिर बनवाने के लिये उपदेश दिया । पहिले बाला के मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई । 25 - सं० १९८८ का चतुर्मास जोधपुर में हुआ वहां भी व्याख्यान में श्री भगवतीसूत्र बांचा । और भी धर्म की अच्छी प्रभावना हुई । वहाँ से कापरड़ा तीर्थ की यात्रा करने के लिये गये वहाँ भी बोर्डिंग की स्थापना करवाई । वहाँ से पीपाड़ आकर मन्दिर की प्रतिष्ठा बड़े समारोह के साथ करवाई और समवसरण की रचना हुई । 26- सं० १९८९ का चातुर्मास कापरड़ा तीर्थ पर ही हुआ जिससे वोर्डिंग को अच्छी मदद मिली । पर्युषण पर्व में पीपाड़ बीलाड़ा जैतारण बालाफढ़ासला खारिया जोधपुर विशलपुर आदि प्रामो से बहुत भावुक जन आये पूजा प्रभावना स्वामीवात्सल्य आदि धर्मोद्योत हुआ । अर्थात् जंगल में भी मंगल होगया वहां पर श्री पांचूलालजी वगैरह तीनो भाई आये और जैसलमेर संघ के लिये श्रामन्त्रण किया तथा पांचलालजी की तरफ से वहां बड़ा होल बनवाया बाद विहार कर फलौदी गये और पांचूलालजी ने जैसलमेर का बड़ा भारी संघ निकाला जिसमें ५००० गृहस्थ १०० साधुसाध्वी ने भाग लिया जिसका एक बड़ा प्रन्थ बना हुआ है । 27 १९९० का चतुर्मास फलौदी में हुआ । व्याख्यान में श्री भगवती सूत्र बांचा । विशेष कार्यवहाँ पह हुआ कि श्रीसूरजमलजी कौचर की धर्मशाला में बड़ा होल बनवाया जिसमें नन्दीश्वर द्वीप की रचना हुई हजारों जैन तथा जैनेतर भाई ने लाभ लिया और जैनधर्म का गुणगाया इत्यादि । वहाँ से विहारकर जोधपुर तथा पाली होते हुए सादड़ी आये चैत्र मास की शाश्वतीश्रोली बड़ा ही उत्साह के साथ ही करवाई | बाद लुनावा होकर शिवगंज तथा वहाँ से जावाल प्रतिष्ठा के लिये गये । वहाँ श्राचार्य विजय मिसूरीश्वर का दर्शन हुआ सूरिजी की बड़ी भारी मेहरबानी रही थी । 28 सं० १९९१ चतुर्मास शिवगब्ज में हुआ व्याख्यान में श्री भगवतीसूत्र बांचा । वहाँ पर नाद - मांडवा कर तीन सौ नरनारियों को विधिविधान के साथ समकित दी इत्यादि । धर्मका खूब ही उद्योत हुना व्याख्यान का ठाट बहुत ही अच्छा रहता था । 29 सं० १९९२ का चातुर्मास जोधपुर में हुआ। मुनिश्री का शरीर नरम था व्याख्यान श्रीगुणसुन्दरजी बांचते थे । तथापि पर्युषण पर्व का बड़ाही ठाठ रहा था बाद चतुर्मास के वहां से विहारकर कापरड़ा की यात्रा की गयी । 30 सं० १९९३ का चतुर्मास पाली में हुआ वहाँ भी अच्छा ठाट रहा मूर्ति पूजा का प्राचीन इतिइस श्रीमान् लोकाशाह नाम की पुस्तक पाली में लिख कर वहां से सोजत तथा ब्यावर पधारे। वहीँ स्थानक बासी साधु अम्बालालजी तथा अर्जुनलालजी से भेंट हुई । उन दोनों साधुओं को मूर्ति के विषय में अच्छा प्रबोधित किया वहाँ से अजमेर तथा नागौर जाकर समदड़ियों के बनाये हुए स्टेशन पर चंदप्रभू के मन्दिर प्रतिष्ठा एवं नंदीश्वर द्वीप की रचना समदड़ियों के तरफ से करवाई और श्राचार्य रत्नप्रभसूरिजी के बाके की स्थापना भी करवाई । सुरांणों की बगेची में आचार्य धर्मघोषसूरि के पादुकों की स्थापना की । 31 १९९४ का चतुर्मास सोजत में हुआ वहां भी व्याख्यान में श्री भगवती सूत्र का बांचना हुआ और समवसरण की रचना बहुत समारोह के साथ हुई । सवारी में हाथी वगैरह जाने से धर्म की बहुत प्रभावना हुई । वहाँ से कापरड़ा होकर ब्यावर तथा अजमेर पधारे । Jain Education Internatio For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy