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________________ वि० पू० २८८ ] भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास राज प्रकरणा 0.000000 यों तो जैन धर्म क्षत्रियों का ही धर्म है इस धर्म के बर्तवान कालापेक्षा चौबीस तीर्थ क्षत्री बंश में अवतार लेकर समय २ पर जैन धर्म का उद्धार एवं प्रचार किया और जैनधर्म को विश्वव्यापी धर्म बना दिया। यही कारण है कि एक समय जैन धर्म राष्ट्रीय धर्म एवं विश्व धर्म कहलाता था । भूतकाल में जितने चक्रवर्ती बलदेव, वासुदेव, प्रति वासुदेव और मण्डलीक राजा महाराजा हुए वे प्रायः सबके सब जैन धर्मोपाशक प जैन धर्म प्रचारक ही थे । इन सबका इतिहास कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने 'षिष्ठि सिलिका पुरुष चरित्र' नामक ग्रन्थ में खूब विस्तार से लिखा था और वह गन्थ मुद्रित भी हो चुका है । तथा संक्षिप्त रूप से इसी प्रन्थ के श्रादि में कोष्टक के रूप में दे दिया गया है जिसके पढ़ने से पाठक स्वयं जान सकेंगे कि जैन धर्म कितना विशाल एवं जन कल्याण के लिये कितना उपादय है । मैंने इस पुस्तक में भगवान पार्श्वनाथ के समय से ही इतिहास लिखना प्रारम्भ किया है । अत: उस समय के जैनराजाओं का इतिहास इस प्रकरण में लिखा जाना न्याय संगत है । यह बात तो जगत्प्रसिद्ध है कि भगवान पार्श्वनाथ का जन्म काशी देश की बनारसी नगरी के राजा अश्वसेन की महाराणी वामादेवी की रत्नकुक्ष से हुआ था भगवान पार्श्वनाथ अपनी ३० वर्ष की आयु में संसार के भौतिक पदार्थों का त्याग कर जैन दीक्षा स्वीकार करली थी। राजा अश्वसेन के पार्श्व कुमार एक ही पुत्र था । जब राजा अश्वसेन का देहान्त हुआ तब आपके राज के लिये कोई भी उत्तराधिकारी नहीं था । काशी के पड़ोस में स्वगौत्रीय कौशल देश का राजा काशी को अपने अधिकार में करना चाहा पर कहा है कि 'जोरू जमीन जोर की, और जोर नहीं तो और की। इस युक्ति के अनुसार मगद की लच्छवी जाति के क्षत्री शिशुनाग नामक वीर पुरुष मगद से आकर काशी प्रदेश को अपने अधिकार में कर लिया और काशी पति बनकर वहाँ का राज करने लगा। जब राजा शिशुनाग का काशी में राज होने से उनके राज सैना कोष्टागार वगैरह का बल बढ़ गया बाद मगद देश के हितचिन्तक अग्रेश्वर लोग शिशुनाग राजा के पास आकर प्रार्थना की कि आप तो यहां पधार गये हैं पर मगढ़ में अराजकता छा गई है अतः आप मगद पधार कर एवं वहाँ का राज अपने स्वाधीन करके वहां की जनता को सुखी बनाने की कोशिस करें । राजा शिशुनाग ने उन लोगों की प्रार्थना स्वीकार कर के अपना काकवर्ण नामक पुत्र को काशी का राज संभला कर आप मद में ये और वहाँ की व्यवस्था ठीक कर वहाँ का राज भी अपने अधीन कर लिया । राजा २५४ Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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