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________________ ओसवाल जाति की ऐतिहासिकता] [ वि० पू० ४०० वर्ष ___पक्षपास रहित जैनेतर विद्वानों का हमारी पट्टावलियों प्रति जितता सद्भाव है उतना कई जैन नाम धराने वालों का नहीं है इसका कारण पूर्व बतलाया गच्छ एवं समुदाय भेद ही है; पर उन लोगों को मताग्रह के कारण अभी यह बात नहीं सूझती है कि हम अपने ही पैरों पर कुठाराघात कर रहे हैं जिसका भविष्य में क्या फल मिलेगा ? इस सत्य वस्तु को छिपाने एवं मिटाने से जैनजातियों एवं श्रोसवाल जाति का गौरव बढ़ता है या मिट्टी में मिल जाता है । जिस जाति का २४०० वर्षों का उज्जवल इतिहास है उसको ८८०-९०० वर्ष जितना सममना कितनी भारी भूल है। इस भूल का परिणाम यह होगा कि १५०-१६०० वर्षों में ओसवाल जाति ने तन धन मन से लाखों नहीं पर करोड़ों रुपया देश सेवा के लिये व्यय किये हैं एवं देश पर बड़ा भारी उपकार किया है उन सब पर पानी फिर जायगा। अरे अकल के बादशाहो ! जरा विशाल दृष्टि से विचार करो कि श्रोसवालों को जगतसेठ नगरसेठ, पंच चौधरी आदि महत्वपूर्ण पद मिले हैं वह कुछ करने से ही मिले होंगे, तथा बड़े बड़े राजा महाराजाओं ने पट्टा, परवाने, सनद एवं पत्रों द्वारा ओसवालों का बड़ा भारी उपकार माना है और राज रखने वाला कहा है, यह कुछ करने पर कहा होगा या यों ही लिख दिया है। पर इस उज्जवल इतिहास को छिपा देने से आपकी क्या दशा हुई है ! कहाँ पर आपकी पूँछ रही है !! कहाँ पर आपका आसन रहा है !!! इतना ही क्यों पर श्राप दुनिया में जीते गिने जाते हो या मुदों ? जो अपने पूर्वजों को भूल कृतघ्नी बन जाते हैं उनकी इससे अधिक क्या दशा हो सकती है। ___अरे अर्द्ध शिक्षको ! आज तुम्हारे प्रतिपक्षी तुम्हारे उज्जवल इतिहास को नेस्त नाबूद करना चाहते हैं और तुम उसमें सहायक बनते हो, यह एक बड़ी मजा की बात है। देखिये आज स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली पुस्तकें जिसमें साधारण व्यक्तियों के विषय में कितने गौरवशाली इतिहास लिखे गये हैं तब तुम्हारे भगवान महावीर के विषय में तो कई लोग महावीर को जानते ही नहीं हैं और कोई जानते हैं तो साधारण व्यक्ति की तरह दो शब्द लिख दिये । परन्तु वह किसके पुत्र थे इनकी माता कौन थी उनका क्या व्यवसाय था और उन्होंने कौन सा महत्त्वशाली काम किया था आदि आदि बातों के लिये अभी जनता अंधेरे में हो है । यह हमारे अर्द्धदग्ध शिक्षितों की संकुचितता का ही परिणाम है । जब भगवान महावीर का ही यह हाल है तो जगदूशाह चम्पाशाहादि जैसे दानेश्वरियों का तो नाम ही कहां से हो ? क्योंकि ऐसे अनेक दानी मानी उदार एवं वीर पुरुषों का पुनीत जीवन पट्टावलियों वंशावलियों में है और उनको मानने से आपने इन्कार कर दिया इतना ही क्यों बल्कि आपने तो उनको झूठा बतला कर अवहेलना भी कर डाली। अतः आपको संतान उन वीरों के नाम तक को भी भूल जायगी तो कौन सी आश्चर्य की बात है ? __ओसवालो ! आप अपने उन पूर्वजों के उदार जीवन नहीं पढ़ोगे वहाँ तक तुम्हारे हृदय में गौरव नसों में खून कभी नहीं उबलेगा । जब आपके हृदय में गौरव और नसों में खून ही नहीं रहेगा तो तुम दुनिया के सामने कुछ भी करने एवं बतलाने काबिल नहीं रहोगे। इसी कारण तुम दर दर के भिखारी बन कर पग २ पर ठुकराये जाते हो । खैर अभी तो इतनी ही हालत हुई है पर भविष्य में न जाने कुदरत ने आपके लिये क्या क्या तजवीज सोच रक्खी है। ओसवालो! यदि तुम्हारे मगज के सामने गच्छ या समुदाय की दीवार खड़ी हो गई हो तो ____१८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only wwwmarnelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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