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वि० पू० ४०० वर्ष ]
[ भगवान् पाश्वनाथ को परम्परा का इतिहाः
अधिक से अधिक टैक्स था (पंचशतीश शोडषाधिकम् ) कि जिसको साधारण लोग सुख से दे ही नहीं सकते थे फिर भी ब्राह्मणों के साम्राज्य में वह विचार कर भी तो क्या सकते थे ? उनको मजबूर हो देना ही पड़ता था इस कारण उन ब्राह्मणों की जुल्मी सत्ता अर्थात् नादिरशाही से जनता के नाक में दम आ गया था और वह उस कष्ट से मुक्त होना चाहती थी पर इसका कोई उपाय ही नहीं था।
जब उपकेशपुर के राजा मन्त्री और नागरिक लोगों ने जैनधर्म स्वीकार कर लिया जा तब उन ब्राह्मणों का टैक्स जनता पर ज्यों का त्यों हो रहा : कारण जैन हो गर तो धया हुश्रा ? संस्कार विधान एवं जन्म विवाह और मृर स्वादि क्रिया तो करानी ही पड़ती थी क्योंकि वह जमाना ही क्रियाकांड का था। थोड़ी २ बातों में भी उन ब्राह्मणों की खुशामद करनी पड़ती थी।
पर कहा है कि 'अतिसर्वत्र वर्जयेत' अन्याय अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाता है तो उसके पैर उखड़ ही जाते हैं । इन ब्राह्मणों के अन्याय का भी यही हाल हुआ।
एक समय मंत्री ऊहड़ किसी कार्य्यवशात् मलेच्छों के देश में गया था । वापिस लौट के श्राया नो ब्राह्मणों ने उदघोषणा कर दी की उहड़ मंत्री मलेच्छो के देश में जाकर पतित बन आया है। अतः इसके यहाँ कोई भी ब्राह्मण क्रियाकाण्ड नहीं करावे इत्यादि ! इस पर ऊहड़ ने उन विनों के सामने बहुत नम्नना पूर्वक लावारी की और द्रव्य खर्च करने या ब्राह्मणों को भोजन करने के लिए कहा पर सत्ता के घमंड में ब्राह्मणों ने एक भी नहीं सुनी । अतः मंत्री कुपित हो कर सदैव के लिए जनता को इस शंक्रान्त से मुक्त होने का एक उपाय सोच कर अपने आदमियों को हुक्म दे डाला और उन्होंने ब्राह्मणों को खूब पीटा परन्तु ब्राहाण हमेशा अवय हुश्रा करते हैं। तत्पश्चात् एक ऐसी घटना बनी कि ऊहड़ ने एक लक्ष यवनो को बुलाया और ब्राह्मणों के पीछे कर दिये। ब्राह्मण वहां से भाग कर श्रीमालनगर में चले गये यवनो ने भी उनका पीछा किया और चलकर श्रीमालनगर पर धावा बोल दिया । श्रीमाल नगर के महाजनों ने ब्राह्मणों से पूछा और उन्होंने सब हाल कह एनाया। इस पर महाजनों ने ऊड़ के पास जाकर प्रार्थना की ऊहड़ ने कहा कि यदि ब्राह्मण उपके शपुर वालियों पर अपना हक छोड़ दें तो मैं उनको समझा कर वापिस लौटा सकता हूँ । बस, महाजनों के कहने से श्रीमाली ब्राह्मणों ने स्वीकार कर लिया और एक इकरारनामा लिख दिया कि आज से उपकेशपुरवासियों पर हमारा कोई हक्क नहीं है। उस दिन से उपकेशवंशियों के साथ ब्राह्मणों का सम्बन्ध टूट गया। अब उपकेशवंश वाले स्वतंत्र हैं कि अपना दिल चाहे उस ब्राह्मण से क्रियाकाण्ड करवा सकते हैं और यह रिवाज आज पर्यन्त चला भी आ रहा है कि संसार भर की तमाम आर्य जाति के गुरु ब्राह्मण हैं पर उपकेश्वंश यानी ओसवालों के साथ ब्राह्मणों का कोई भी सम्बन्ध नहीं रहा है ।
तस्मात्उकेशज्ञातिनाँगुरखोब्राह्मणानहिं । उएसनगरं सर्वकररीणासमुद्धिमत् ।। सर्वथा सर्व (वि ) निर्मुक्तमुएशनगरंपरम् । तत्प्रभृतिसंजातमिलिलोकप्रवीणाम् ॥१॥
( समाइजच वयानुसार ) "श्रीमाली वणिया शातिमेद ५५तक पृष्ट ६." इस लेख में मंत्री ऊहड़ का जिक्र आया है। यह वही उहड़ है जिसने उपकेशपुर में महावीर मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई थी जिसका समय वि० पू० ४०० वर्ष का ही था ।
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