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________________ ओसवाल जाति की ऐतिहासिकता ] [ वि० पू० ४०० वर्ष तस्य शस्यतमस्यापि क्रुतश्चिदपि कारणात् । विरोधः सहजाज्जज्ञे नागराग्रेसरैः सह ।। ततश्च वेसटः श्रेष्ठी यत्र वैरं परस्परम् । तत्र देशे न वास्तव्यमिति नीतिमचिन्तयत् ।। एवं विचार्य सोऽथाममतिर्णन्तुमना मनाक् । बभूव भूमिभाजाँ किं क्वचिदस्ति स्थिरा मतिः ।। ततः सर्वस्वमायाय दायाद इव गोत्रतः । अभिमानेन सा श्रेष्ठी बभूव नगरात् पृथक् ।। सोच्छा (त्सा) हं रथमारूढः शुभायतिविसूचकैः। शकुनः प्रेरितोऽचालीत् मुवाग्भिः स्वजनैरिव ।। अविलम्बैः प्रयाणैः स गच्छन्नच्छाशयः पथि । किराटकूपनगरं प्राप पापविवर्जितः ।। सुरसमपताकाभिश्वलन्तीभिश्चतुर्दिशम् । पथिकानाह्वयतीव यत्पुरं सर्वदिग्गतान् ।। यत्र वापीपु कूजन्तो राजहंसादिपक्षिणः । कथयन्तीव पान्थानाँ वारिणो रमणीयताम् ।। दह्यमानागरुद्ध तधूमोर्मिकलितेऽम्बरे । वरात्र इवाभाति यत्र नित्य घनोन्नतिः ।। नानादेशागतोपान्तविश्रान्तानन्तसार्थिकम् । सार्थ तन्नगरं वीक्ष्य श्रेष्ठी स्थितिमति व्यधात् ।। तत्र वित्रासिताशेषशात्रवो देशनायकः । परमार कुलोत्पन्नो जैत्रसिंहाभिधः सुधीः ।। नाभिनन्दन जिनोद्धार प्रस्ताव १ श्लोक १७ से ४८ __मरूभूमि का भूषणरूप उपकेशपुर नाम का एक श्रेष्ट नगर है जो पृथ्वी पर स्वस्तिक की तरह अति सुन्दर और षट् ऋतु के फल फूलों सहित बाग बगीचे से शोभायमान है। वहाँ रहनेवाले मुनिजन कनक कामिनी के सम्बन्ध से बिल्कुल मुक्त हैं परन्तु नागरिक लोगों में ऐसा कोई दृष्टिगोचर नहीं होता है कि जिसके पास पुष्कल द्रव्य और विनीत सुन्दर रमणी न हों । उस नगर में हंसों की चाल रमणियां और रमणियों की चाल हंस बिना ही उपदेश के शिक्षा पा रहे हैं। मकानों पर लगी हुई मणियों की कान्ति से अन्धकार का नाश होता है और तालावों के अन्दर कमल सदा प्रफुल्लित रहते हैं । रात्रि के समय मकानों को जालियों के अन्दर चन्द्र की किरणों का प्रकाश विरहणि औरतों को कामदेव के बाण की भाँति संतप्त करता है। व्यापार का तो एक ऐसा केन्द्र है कि पिता पुत्र अलग २ व्यापार करनेवाले शायद छे छे मास में भी मिल नहीं सकते। उस नगर में वीर निर्वाण से ७०वें वर्ष आचार्य रत्नप्रभसूरि ने भगवान् महावीर के मन्दिर की प्रतिष्ठा की हुई मूर्ति आज पर्यंत विद्यमान है। उस मन्दिर में धुकता हुआ धूप के धुयें से श्राकाश श्यामावर्ण का दीखता है । जब मन्दिर में पूजा भक्ति नाटक होता है जिर की ध्वनि से मयूर मेघ की भ्रान्ति कर नाच ने लग जाते हैं। उस नगर के लोगों के पाप को उच्छेद करनेवाला एक नर्दम नामक स्वर्णमय सुन्दर रथ जो महावीर की रथयात्रा के निमित्त सालभर में एक बार सब नगर में घूमता है। उस नगर के बाहर एक विदग्धा नामकी ऐसी भूलभुलैया वापी है कि जिस सोपान से कुकुंम के छापा लगा कर वापी के अन्दर जाता है फिर कोशिश करने पर भी उस सोपान के द्वारा वापिस नहीं आया जाता है। उस नगर में विशाल एवं उन्नत धन धान्य सम्पन्न एक संगठन में संगठित हुआ उपकेश नाम का उन्नत वंश है और जैसे वंश पत्तों से एवं बड़ शाखाओं से शोभायमान है वैसे यह उपकेशवंश १८ गोत्र से शोभायमान है। उस नगर में धन धान्य से समृद्धिशाली और भूमंडल में विख्यात श्रेष्टि गोत्र अवतंश वेसट नाम का सेठ रहता था जिस ने याचकों को बार२ दान देकर उनका घर द्रव्यले भर दिया था कि उनके घरों से दरिद्र चोरोंको तरह भाग गया था। उनकी १५९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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