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वि० पू० ४०० वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
___ऊपर का मेटर लिखने के पश्चात् पुराणी वंशावलियों के पन्ने उल्टते समय एक ऐसी घटना का भी उल्लेख नजर आया है कि वि० सं० ११३ में उपकेशवंशीय बलाहगोत्र के शाह वीरमदेव ने एक महेश्वरी रामपाल की पुत्री के साथ शादी करली थी उस समय उपकेशवंशियों का बेटी व्यवहार राजपूतों के साथ होता था तथापि कई लोगोंने वीरमदेवके लिये महेश्वरीकी कन्या के साथ लग्न कर लेने का विरोध किया जिससे एक मतभेद खड़ा हो गया पर उस समय समाज के शुभचिंतक जैनाचार्य आपसी मतभेद नहीं पड़ने देने के लिये खड़े कदम रहते थे और उन आचार्यों का समाज पर बड़ा भारी अंकुश भी था अतः आचार्य रत्न प्रभसूरि को खबर होते ही उन्होंने महेश्वरी कन्या को विधि विधान से वासक्षेप देकर जैन बनाली जैसे अन्य राजपूतादि को बनाते थे । बस, वह मतभेद वहां ही शांत हो गया।
इस घटना से इतना तो सहज ही में जाना जा सकता है कि विक्रम की दूसरी शताब्दी में ओसवंश एवं उपकेशवंश अच्छी आबादी पर था । अतः इसका जन्म चार पांच शताब्दी पूर्व हुआ हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
___इन वंशावलियों में केवल श्रावकों के कराए हुए मन्दिरों की प्रतिष्ठा एवं तीर्थयात्रा निमित्त निकाले सङ्घादि का ही वर्णन नहीं है पर उस समयवर्ती राजकीय प्रकरण का भी बहुत मसाला मिलता है। सूर्यवंशी महाराजा उत्पलदेव ने जैनधर्म स्वीकार करने के बाद कितने पुश्त तक उपकेशपुर में राज किया तथा आपकी संतान में किन-किन वीरों ने कौन से नये नगर एवं ग्राम बसा कर वहां पर कितने २ समय तक राज किया तथा समीपवर्ती माण्डव्यपुर में कौन २ राजा हुए तथा चन्द्रसेन की सन्तान ने चन्द्रावती नगरी में कब तक राज किया।
किस जैनाचार्यों ने किस किस समय जैनेतर क्षत्रियों को प्रतिबोध देकर जैन बनाये और किन किन कारणों से उनकी जातियों के नाम संस्करण हुये इन सब बातों का पता वॅशावलियों से मिल सकता है। अतः जैनधर्म और जैन जातियों के हाल जानने के लिये वैंशावलिये बड़े ही काम की वस्तुयें हैं। उन वैंशावलियों आदि साधनों को न जानने से ही आज हमारी यह दशा हो रही है कि न तो हमारा कहीं स्थान मान है और न हम अपने पूर्वों के किये हुए सुन्दर कार्यों को जनता के सामने रख ही सकते हैं । यही कारण है कि हमारी नसों में अपने पूर्वजों के गौरव का खून बहना बंद होगया है फिर भी हम समाज का द्रव्य व्यय कर उन्नति २ चिल्ला रहे हैं पर इस कोरे चिल्लाने की क्या कीमत है ?
हमारी वंशावलियां आज व्यवस्थित रूप में नहीं हैं। जो जिनके पास है उन्होंने उनको अपनी आजीवका का मुग्व्य साधन समझ रक्खा है । यदि कोई जिज्ञासु देखना चाहे तो वे इतना संकुचित भाव रखते हैं कि एक अक्षर दिखाने को अपनी आजीविका का बन्द होना समझते हैं। यही कारण है कि हमारा ऐतिहासिक ज्ञान प्रायः लुप्त हुआ और होता जारहा है और इसकी ओर किसी का लक्ष्य तक भी नहीं पहुँचता है इससे ज्यादा क्या अफसोस हो सकता है !
___ प्रस्तुत वंशावलिये जो मुझे मिली हैं प्राचीनता की दृष्टि से इसनी प्राचीन तो नहीं हैं कि जिस समय की घटनायें इनमें उल्लिखित हैं फिर भी यह विल्कुल निराधार भी नहीं हैं । वे भी किसी न किसी आधार एवं वंशपरम्परा से चले आये ज्ञान के आधार पर ही लिखी होंगी।
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