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________________ वि० पू० ४०० वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास संतुष्ट नहीं किया। इस हालत में मंत्री ने आचार्य रत्नप्रभसूरि के पास आकर वही सवाल पूछा कि गुरु महाराज ! दिन को बनाया हुआ मेरा मन्दिर रात्रि में क्यों गिर जाता है ? इस पर सूरिजी ने कहा कि मंत्रेश्वर ! आप मन्दिर किसका बनाते हो ? मंत्री ने कहा कि मंदिर नारायण का बनाता हूँ (जो पहिले से प्रारम्भ किया हुआ है)। इस पर सूरिजी ने अपने ज्ञानबल से देख कर कहा कि यदि आप महावीर के नाम से मन्दिर बनावें तो ऐसा उपद्रव नहीं होगा। मंत्री ने सूरिजी की आज्ञा शिरोधार्य कर ली। और महावीर के नाम से मन्दिर बनाना शुरू किया फिर तो एक भी उपद्रव नहीं हुआ और मन्दिर क्रमशः तैयार होने लग गया। जिसको देख सब लोग आश्चर्ययुक्त हो गये। इधर पहले से ही देवी ने उस मन्दिर के योग्य महावीरदेव की मूर्ति बनानी शुरू कर दी थी। जिसका हाल यह है कि-मंत्री की गाय 'जो घड़ासरशवाडावाली-धनघटीगाय के नाम से मशहूर थी' वह गाय गोपाल से पृथक् हो लुणाद्रिपहाड़ी के नजदीक एक कैर का माड़ के पास जाती थी तो स्वयं दूध-स्राव हो जाता था जब गाय का दूध कम होने लगा तो मंत्री ने गोपाल को धमका कर उसका कारण पूंछा ? गोपाल दिन भर गाय के साथ रहा और शाम को प्रस्तुत स्थान दूध-स्राव होता देख कर मंत्री के पास आया और सब हाल कहा एवं साथ चलकर मंत्री को वह स्थान भी बतलाया कि जहां गाय का दूध स्वयं मर जाता था। बाद मंत्री के दिल में संदेह हुआ कि यहां क्या चमत्कार होगा कि गाय का दूध स्वयं स्राव हो जाता है । इस संदेह के निवारणार्थ सब दर्शनिकों को एकत्र कर अपनी गाय का दूध मरने का कारण पूछा तो किसी ने कहा यहां धन का खजाना है । किसी ने कहा यहाँ ब्रह्मा की मूर्ति है, किसी ने विष्णु, किसा ने शिव, किसी ने बुद्ध और किसी ने गणेश की मूर्ति बतलाई । इस प्रकार भिन्न २ कारण बतलानेसे मंत्रि का सन्देह नहीं मिटा और इस संदेह २ मैं उसने कई मास व्यतीत कर दिये। आचार्य रत्नप्रभसूरि उपकेशपुर में चतुर्मास कल्प करके आस पास के ग्रामों में विहार कर पुनः उपकेशपुर में पधारे थे और किसी उद्यान के एक विभाग में आप ठहरे हुये थे । अतः मंत्री ने जाकर विनय के साथ सूरिजी से अपनी गाय का दूध के विषय प्रश्न पूंछा जिसको अच्छा लाभ वाला जान सूरिजी ने मंत्री से कहा कि मंत्री तुम कल प्रभात होते ही आना मैं तुम्हारे प्रश्न का समुचित उत्तर दूंगा । विश्वास का भाजन मंत्री सूरिजी को वंदन कर अपने मकान पर चला गया। बाद सूरिजी ध्यान में स्थित हो गये । रात्रि में देवी चामुंडा ने सूरिजी के पास आकर अर्ज की कि हे पूज्यवर । कई महीनों से मैं भगवान महावीर की मूर्ति घटोध्नी श्रेोष्ठिनो धेनुः, साय निर्गत्य गोकुलात् । लावण्यहृदनामाद्रौ, क्षीरं क्षरति नित्यशः ॥ गोपालः श्रोष्ठिनाप्रच्छि, दुग्धाभावस्ये कारणम् । तेन सम्यग विनिश्चित्य, कथितं दृर्शितं च तत्॥ सोऽपि विप्रानथाऽपृच्छत् , तथा दर्शनिनोऽखिलान् । स्वर्गार्दुग्ध स्राव हेतुं, तेऽप्याख्यन् नैक भाषया॥ के प्याहुः शेवधि रिह, केपि कृष्णः शिवोऽपरे । त्वद्देव गृह योग्योऽय, बुद्धो लम्बोदरो ऽथवा ॥ मिथो विभिन्न वाच्येभ्य, स्तेभ्यः सन्दिग्ध मानसः। मासान् पंच व्यतीयाय, साधिकान् कतिभिर्दिनैः।। सूरयोऽपि मास कल्पं, तत्र कृत्वाऽन्यतो गतः । चतुर्मास कल्पान्ते, पुनस्तत् पुरमागमन् ॥ तान पुरोद्यान भूभागे, ऽवस्थिता नवगत्य सः। सूरीनु पेत्य पप्रच्छ, श्रेष्ठी सन्देह मात्मनः ॥ तद्विज्ञाय शुभोदकं, सूरि माह विचिन्त्य भोः। प्रातस्ते संशय पोष्ठि, अपने ष्याम्य संशयम् ॥ 9 . . Jain Education temnational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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