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[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
. वस्तु के अंश को वस्तुमानने का कारण यह है कि उस शुभ भावना में यदि काल प्राप्त हो जायतो उसकी अच्छी गति होती है। उदाहरण के तौर पर देखिये । जैसे आप इस समय व्याख्यान सुन रहे हैं इसको सात नयों द्वारा इस प्रकार समझना चाहिये ।
० पू० ४०० वर्ष ]
१ - व्याख्यान सुनने की इच्छा की— नैगमनय के मत से व्याख्यान सुना ही कहा जा सकता है । २ -- व्याख्यान सुनने को जाने के लिए सब सामग्री एकत्र की— दूसरी संग्रहनय वाले का मत है। कि एक अपेक्षा से उसको व्याख्यान सुना ही कहा जाता है। पूर्व उदाहरणा पेक्षा ।
३ – व्याख्यान प्रारम्भ हो गया और श्रोताजन व्याख्यान सुन भी रहा है - तीसरी नय का मत है कि उसको व्याख्यान सुना ही कहा जाता है ! पूर्ववत्
४- ध्याख्यान के स्थूल विषय जैसे किसी का चरित्र एवं क्रिया-- आचार विषयक व्याख्यान सुन लिया पर तात्विक विषय को नहीं समझा फिर भी चौथी नय के मत से व्याख्यान सुना ही कहा जाता है । ५ - व्याख्यान के तात्विक विषय को सुन कर ठीक समझ लिया अर्थात् तत्त्वबोध हो गया उसको पांचवी नय वाला व्याख्यान सुना मानता है ।
६ -- व्याख्यान का जितना विषय सुना हैं उसमें अंशमात्र न समझने पर भी छटा नय वाला व्याख्यान सुना ही मान लेता है ।
७—व्याख्यान का सब विषय सुन कर सबको धारण कर लेने पर सातवीं नय वाला व्याख्यान सुना मानता है । इसने सम्पूर्ण व्याख्यान सुनना और उस पर अमल करने कों ब्या० सुना माना ।
हे राजन् ! इसमें यथास्थान नय को स्थापन कर सब सातों नय को यथाक्रम मानने वाले को सम्यग् दृष्टि कहा जाता है और एक एक नय को खेंच कर अपेक्षारहित एकान्त आग्रह करके मानने वाला मिथ्यादृष्टि कहलाया जाता है, अतः जिनभाषित सातों नयों को मानना चाहिये । अब चार निक्षेप भी सुन लीजिये ।
१-- नामनिक्षेप - किसी भी पदार्थ का नाम रख दिया जैसे किसी पदार्थ का नाम ऋषभदेव रख दिया और उस नामसे बतलाना यह नाम निक्षेप है ।
२ - स्थापनानिक्षेप - किसी भी पदार्थ की स्थापना कर दी उस स्थापना को सत्य मानना यह स्थापन निक्षेप है जैसे ऋषभदेव की मूर्ति या ऋषभदेव ऐस अक्षर लिख देना ।
३ -- दव्य निक्षेप - जिस पदार्थ में भूतकाल में गुण था तथा भविष्य में गुण प्रगट होवेगा उसको द्रव्य निक्षेप कहा जाता है । जैसे-धनासारथवहा का भव में ऋषभदेव ने तीर्थंकर नामोपार्जन किया वह द्रव्य ऋषभदेव है तथा ऋषभदेव का सिद्ध होने के बाद भी द्रव्य ऋषभदेव कहा जाता है ।
४ - भाव निक्षेप - वर्तमान में वस्तु के गुण को भाव निक्षेप कहते हैं। जैसे समवसरन में बैठे हुए ऋषभदेव हे राजन! इनके अलावा द्रव्य, गुण, पर्याय, कारण, कार्य, निश्चय, व्यवहार वग़ैरह वग़ैरह जैन सिद्धान्त में तत्वज्ञान विषय की विस्तार से चर्चा है तथा आसन, समाधि, 1 योग और अध्यात्म विषय का तो महर्षियों ने बड़े २ गन्थों का निर्माण किया है कि वह उनकी हमेशां की क्रिया ही थी । १ इच्छा च शास्त्रं च समर्थता चेत्येषोऽपि योगो मत आदिमोऽत्र प्रमादतो ज्ञानवतोऽप्यनुष्ठा ऽभिलाषिणो ऽसुन्दरधर्मयोगः श्रद्धान- बोद्धौदधतप्रकृष्टौ हतप्रमादस्य यथाऽऽत्मशक्ति यो धर्मयोगो वचनानुसारी स शास्त्रयोग परिवेदितव्य ॥
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