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________________ वि० पू० ४०० वर्ष ] [ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास उस नूतन बसे हुये नगर में व्यापार तो इतना होने लगा कि यदि पिता पुत्र अलग २ व्यापार करते तो वह कभी २ छः छः मास तक भी न मिल पाते थे । श्रीमाल नगर के अलावा और भी बहुत नगरों के बड़े २ व्यापारी लोग भी व्यापारार्थ आ रहे थे, जैसे आज बम्बई कलकत्ता व्यापार के केन्द्र हैं और दूर २ के लोगों ने व्यापारार्थ वहां श्राकर अपना निवास स्थान बना लिया है । इसी प्रकार उस समय नूतन बसे हुये उपकेशपुर में व्यापारार्थ दूर २ के लोग आकर बस गये हों तो यह सम्भव हो सकता है। जहाँ पानी की प्रचुरता होती है वहां व्यापार स्वयं खुल उठता है इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं । प्रसंगोपात उपकेशपुर की स्थापना कह कर अब मूल विषय पर आते हैं। ____आचार्य रत्नप्रभसूरि उपकेशपुर पधार तो गये पर किसी एक श्रादमी ने भी उनका स्वागत सत्कार नहीं किया, इतना ही क्यों पर किसी ने ठहरने के लिये स्थान तक भी नहीं बतलाया । इस हालत में आचार्य श्री ने अपने साधुओं के साथ एक लुणाद्री पहाड़ी पर जाकर ध्यान लगा दिया। यह वो आप पहले ही पढ़ चुके हो कि उन मांस आहारियों के प्रदेश में जैन मुनियों के लाने योग्य सात्विक पदार्थ के आहार का कहीं पर योग नहीं मिलता था अतः कई अर्सा से मुनी तपस्या किया करते थे और इस प्रकार निरन्तर तपस्या करना कोई साधारण काम भी नहीं था । तब कई साधुओं को शरीर का निर्वाह न होता देख पारणा करने की इच्छा हुई तो वे गुरु महाराज की आज्ञा लेकर नगर में भिक्षा के लिये गये पर नगर में ऐसा * १ आज भी उपकेशपुर (ओसियाँ ) के आस पास जो इक्षुरस निकालने की अनेक पत्थर की चरखिये यत्र तत्र मिलती हैं इससे साबित होता है कि पूर्व जमाने में यहां पानी की प्रचुरता थी और बहुत गुड़ पैदा होता था। - २ वर्तमान जैसलमेर, फलौदी और बीकानेर नगर हैं; वहाँ पहिले पानी था । आज वहाँ भूमि खुदाई का काम होता है तो दीर्घकाय वाले मच्छों के कलेवर हाड़ पिंजर मिलते हैं, वे इस बात को प्रमाणित करते हैं कि पूर्व जमाने में यहाँ पानी की प्रचुरता थी। . ३ प्राचीन वंशावलियों में यह भी लिखा मिलता है कि यहाँ बालदियों का बहुत व्यापार था । लाखों पोटों द्वारा माल आता जाता था। इस पानी के कारण बालदियों को बहुत चक्कर काटना पड़ता था । अतः अनेक बालदियों ने इस पानी को हटाने का प्रयत्न किया था जिसमें एक हेमानामक बिनजारा ने ही सफलता पाई थी जिसकी एक कहावत भी है कि"लाखा सरीखा लख गया, ओठा सरीखा आठ। हेम हड़ाउन आवसी, फिरने इणही ज भट्ट॥ इत्यादि प्रमाणों से साबित होता है कि उएशपुर के पास मीठे पानी की झील थी। *"गोचर्या मुनीश्वरा ब्रजंति परं भिक्षा न लभते । लोका मिथ्यात्ववासिताः यादृशा गता तादृशा आगता । मुनीश्वराः पात्राणि प्रतिलेष्य मासं यावत् संतोषेण स्थित : पश्चात् विहारः कृतः पुनः कदाचित् तत्राआतः शासनदेव्याकथितं भो आचार्य अत्र चातुर्मासकं कुरु । तत्र महालाभो भविष्यति । गुरुः पंचत्रिंशत् मुनिभिः सहस्थितः मासी द्विमासी तृमासी चतुर्मासी उप्योसित कारिका" उपकेशगच्छ पटावली--१८५ Jain Educak ganternational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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