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आचार्य रत्नप्रभसूरि का जीवन ]
[वि० पू० ४०० वर्ष
बसाया और उसका नाम चंद्रावती नगरी रख दिया। बस श्रीमाल नगर के जितने जैन थे वे सबके सब नूतन स्थापित की हुई चन्द्रावती नगरी में आकर अपने स्थान बनाकर वहां रहने लगे और वहाँ का राजा चन्द्रसैन को बना दिया। थोड़े ही समय में यह नगरी अलकापुरी के सदृश होगई और आस पास के बहुत से लोग आकर बस गये वहां के लोगों के कल्याणार्थ राजा चन्द्रसैन ने भगवान पार्श्वनाथ का विशाल मन्दिर भी पनाया, कहा जाता है कि एक समय चन्द्रावती में जैनों के ३६० मन्दिर थे अतः वह जैनपुरी ही कहलाती थी।
चन्द्रसैन का एक लघुभ्राता शिवसैन था उसने पास ही में एक शिवपुरी नगरी बसा कर अपना गज्य वहाँ जमा दिया।
जब श्रीमाल से जैन सबके सब चले गये तो पीछे था ही क्या ? फिर भी रहे हुए लोगों की व्यवस्था के लिये कार्यकर्ताओं ने तीन प्रकोट बना दिये प्रथम प्रकोट में कोटिध्वज द्वितीय प्रकोट में लक्षाधिपति और दृवीय प्रकोट में शेष लोग । इस प्रकार व्यवस्था करने पर फिर नगर की थोड़ी बहुत सुन्दरता दीखने लगी।
कई प्रन्थों में इस नगर की प्राचीनता बतलाते हुए युग युग में नामों की रूपान्तरता भी बतलाई है जैसे कृतयुग में रत्नमाल, त्रेतायुग में पुष्पमाल द्वापर में वीरनगर और कलियुग में श्रीमाल भिन्नमाल बतलायाहै।
राजा भीमसैन के दो पुत्र थे १-श्री पुंज २-सुरसुन्दर और श्रीपुंज के पुत्र उत्पल देव (श्रीकुमार) ॐ चन्द्रावती नगरी आबू के पास थी विक्रम की तेरहवी चौदहवी शताब्दी तक तो इस नगरी की बड़ी भारी जाहु जलाली थी परन्तु आज तो उसके भग्न खण्डहर नजर आते हैं।
+ शिवपुरी का रुपान्तर वर्तमान सिरोही शहर है जो पुरानी सिरोही के नाम से प्रसिद्ध है। यह दोनों नगर उस समय जैनों के केन्द्रस्थल कहलाये जाते थे। १ श्रीमाल मितियन्नाम, रत्नमाल मिति स्फुटम्, पुष्पमालं पुनर्भिन्नमालं युग चतुष्टये । चत्वारि यस्य नामानि, वितन्वन्ति प्रतिष्ठितम्, अहो ! नगर सौन्दर्य प्रहार्य त्रिजगत्मपि ॥
'इन्द्र हंसगणि कृत उपदेश कल्प बल्ली १ कृत युगे रयण माला, त्रेतायुगे पुष्पमाला, द्वापरे वीर नगरी कलियुगे भीन्नमाल । २ श्रीश्रीमालपुरे पूर्व श्रीपुंजोऽभून्नरेश्वरः । सुरसुन्दरनामास्य, कुमारः सत्वशेवधि ।। स कदाप्यभिमानेन, पुरान्तिर्गत्य निर्भयः । एकान्तेनिंजने भूदेशं नवस्थान चिकीर्षया ॥
'उपकेश गच्छ चरित्र' * तत्रश्री राजा भीमसैन तत् पुत्र श्रीपुंज तत्पुत्र उत्पलकुमार अपरनाम श्रीकुमार तस्य बान्धव श्रीसुरसुन्दर युवराज राज्यभार धुरंधर तयोरमात्य चन्द्रवंशीय द्वौभ्राता तत्र-निवासी सा० ऊहड़१ उद्धरण २ लघुभ्राता गृहे सुवर्ण संख्या, अष्टादश कोट्यः संति वृद्धभ्रातुगृहे नवनवति लक्ष संति । ये कोटीश्वरास्ते दुर्गमध्ये वसतिये लक्षेश्वरास्ते बाह्य वसति । तत ऊहेडेन एक लक्ष भ्रातुः पायें उच्छीणं याचितं ततो बान्धवेन एवं कथितं भवते ! विना नगरं उध्व समस्ति भवता समागमे वासो भविष्यति । एवं ज्ञात्वा राजकुमार ऊहडेन आलोचितवान् नूतनं नगरं बसेयं ततो मम बचनं अग्रे आयातः।
उपकेश गच्छ पटावल्ली पृष्ठ १८४ + कई पटावलियों में उत्पल देव को श्री पूँज का छोटा भाई होना भी लिखा है।
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