SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य केशीश्रमण का जीवन 1 [वि० पू० ५५४ वर्ष ५०० मुनियों के साथ केशीश्रमण (जिन्होंने गौतम के साथ चर्चा की थी) को पांचाल की भोर इनके अतिरिक्त कुछ छोटी २ और टुकड़ियां बना कर शेष प्रदेशों में भेज दीं और स्वयं १००० मुनियों के साथ मगध प्रदेश में रहकर सर्वत्र उपदेश कर धर्म प्रचार करने का बीड़ा उठा लिया। आचार्य श्री की इस महत्वपूर्ण योजना से आपको इतनी सफलता प्राप्त हो गई कि थोड़े ही दिनों में आपने चारों श्रर जैनधर्म एवं अहिंसा भगवती का झंडा फहरा दिया और विश्व फिर से शान्ति का श्वास लेने लगा । जनता अपने कर्तव्य को समझने लगी । यज्ञ जैसे निष्ठुर कार्य से उनको सहज ही में घृणा आने लगी जिसे थोड़े दिन पूर्व वे धर्म का एक मुख्य अंग समझते थे । श्राचार्यजी के प्रयत्न का प्रभाव केवल साधारण जनता पर ही नहीं पड़ा था पर आपका प्रभाव धर्म चमकने लगा । फलस्वरूप :११ - कौशाम्बीका राजा संतानीक १२- सुग्रीव नगर का राजा बलभद्र १३ - काशी कैौशल के बड़े २ राजा महाराजाओं पर हो चुका था । अतः चारों ओर फिर से जैन १- वैशाली नगरी का राजा चेटक ६ - पोलासपुर नगर का राजा विजयसेन २ - राजगृह का राजा प्रसेनजीत ७ - सांकेतपुर का राजा - चन्द्रपाल ३ -- चम्पा नगरी का राजा दधिवाहन ८ - सावस्थी नगरी का राजा अदीनशत्रु ४ - क्षत्रिकुण्ड का राजा सिद्धार्थ ९ कांचनपुर नगरका राजाधर्मशील ५ - कपिलवस्तु का राजा शुद्धोदन १० - कपिलपुर नगर का राजा जयकेतु गण राजा इनके अलावा भी कई भूपति जैनधर्म की शरण लेकर स्वपर कल्याण करने लगे और जब राजा भी इस प्रकर जैनधर्म के झण्डे के नीचे आ गये तो साधारण जनता का तो कहना ही क्या था ? वे लाखों नहीं पर करोड़ों की संख्या में अपनी पतित दशा को त्याग कर जैनधर्मोपासक बन गये । कहा भी है कि 'यथा राजा तथा प्रजा' । अहाहा - संगठन में एक कैसी बिजली सी शक्ति रही हुई है कि जिसका साक्षात्कार हमारे चरित्र नायकजी ने प्रत्यक्ष में कर बतलाया था जिसको पढ़ सुन कर यदि आज भी हमारे सूरिसम्राट् उन महात्माओं का अनुकरण करें तो हमारे लिये कोई भी कार्थ्य असाध्य नहीं है । १४ - श्वेताम्बिका का राजा प्रदेशी राजा महात्मा बुद्ध आचार्य केशी श्रमण के श्राज्ञावृति साधुत्रों में एक पेहीत नामक विद्वान एवं प्रतिभाशाली साधु था । वह एक समय अपने शिष्य समुदाय के साथ विहार करता हुआ कपिलवस्तु नगर में आ पहुँचा। वहाँ का नरेश पहिले से ही जैनधर्मोपासक था, अतः आगंतुक मुनियों का स्वागत सत्कार करना स्वभाविक ही था । मुनिपुंगव का व्याख्यान हमेशा त्याग एवं वैराग्य पर होता था जिसका जनता पर अच्छा प्रभाव पड़ता था । राजा शुद्धोधन के पुत्र बुद्धिकीर्ति ( गोतमबुद्ध) पर तो आप का इतना प्रभाव हुआ कि वह व्याख्यान सुन कर संसार से विरक्त हो गया । पर राजा शुद्धोदन एवं आपका कुटुम्ब यह कब चाहता था कि बुद्ध कीर्ति हमको Jain Education International -श्री भगवतीजी सूत्र, राजप्रश्नीजी सूत्र, उत्तराध्ययनजी सूत्र, कल्पसूत्रादि सूत्रों में तथा चरित्र और पट्टावलियादिग्रन्थों में भगवान् पार्श्वनाथ संतानियों के अस्तित्व के उल्लेख प्रचुरता से मिलते हैं । For Private & Personal Use Only १७ www.janmelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy