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भगवान पार्श्वनाथ ]
[वि० सं० पू० ८२०
तेईसवें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ
श्री तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान् ख्यात स्त्रिविंशोमहान् । सर्वः स्वेतर धार्मिकः सनिवहो भिन्न न यं ज्ञानवान् ॥ दीप्ताग्ने 'अ. सि. आ. उ सा', त्ति वचसा नागम् च यत्रा तवान् । कुर्याच्छि धरणेन्द्र नामक करः सर्पस्य सोऽत्रात्मवान् ॥१॥
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वाज से करीबन २८०० वर्ष पूर्व का जिक्र है जब कि भारत भूमि भगवान पार्श्वनाथ के पुनीत
चरण कमलों से पवित्र हो रही थी । भगवान् पार्श्वनाथ का विश्वोपकारी शासन १६००० * अतिशय प्रभावशाली लब्धिसम्पन्न उत्कृष्ट ज्ञानी ध्यानी विद्वान मुनि पुङ्गवों, ३८०००
विदुषी साध्वियों अनेक राजा महाराजा और असंख्य भव्य भक्तों से सुशोभित हो रहा था। प्रभु पार्श्वनाथ के कल्याणकारी-उपदेशामृत का पान कर भारत का जीवन परम
उल्लासमय हो रहा था, उनके दिव्य चारित्र एवं भव्य भावनाओं से जन कल्याण के साथसाथ आत्म विकास एवं मोक्ष साधन का मार्ग प्राणीमात्र के लिए खोल दिया गया था। क्षुद्र से क्षुद्र जीवों को जी ने का स्वतंत्र अधिकार एवं अभयदान प्राप्त हो चुका था। आ हा! हा!! उस समय भारत में दो सूर्यों का प्रकाश हो रहा था । एक सूर्य संसार के द्रव्य अन्धकार को हटा रहा था, तब दूसरा सूर्य विश्व का भाव अन्धकार ( अज्ञान ) को समूल नष्ट कर रहा था। यही कारण है कि उन ज्ञान रश्मियों के आलोक में प्रेम का अद्भुत प्रवाह भारत के जीवन को नवप्लावित बना रहा था। बस, उन लोकोत्तर महापुरुष के दिव्य जीवन की यही विशेषता थी कि उनके दर्शन, स्पर्शन ही क्या, पर उनका स्मरण मात्र से ही जनों का कल्याण हो जाता था। यह कहना भी अतिशयोक्ति न होगी कि उस समय संसार भर में इतने ही शुभ परमाणु थे कि जिससे भगवान् पार्श्वनाथ का शरीर का निर्माण हुआ था।
भगवान पार्श्वनाथ किसी मत्त पंथ समुदाय एवं व्यक्ति विशेष की सम्पत्ति नहीं थे किन्तु आप किसी प्रकार के भेद भाव बिना अखिल विश्व के कल्याणकत्तों थे। यही कारण है कि आपश्री का नाम विश्व विख्यात हैं, आप श्री का उज्जवल यश एवं कमनीय कीर्ति जैन समाज में ही नहीं, पर सम्पूर्ण संसार में व्याप्त है । आप श्री का पुनीत एवं अलौकिक जीवन चरित्र के लिये यों तो बृहस्पति भी वर्णन करने में असमर्थ हैं तथापि कई विद्वानों एवं धुरंधरों ने आप श्रीजी के कई जीवन चरित्र लिखे और उनमें से कई मुद्रित भी हो चुके हैं। अत: यहां पर मैं श्राप श्री का जीवन विस्तृत रूप से नहीं लिख कर आप श्री के जीवन की मुख्य-मुख्य घटनाएं लिख कर पाठकों के सामने रख देता हूँ।
भारत के वक्षस्थल पर विश्व विख्यात काशी नाम का मनोहर एवं रम्य देश है, जो विद्या के लिये बहत प्रसिद्ध है, उस काशी देश की मुख्य राजधानी बनारस नगरी जो धन धान्य से समृद्ध एवं व्यापार
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