SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२१] बन्धनो का प्रायश्चित। आवश्यकता होने पर पुस्तकें लिखना वल्लभी नगरी में संघ सभा और पागमो को पुस्तकारूढ करना इत्यादि ६-चैत्यवास प्रकरण, इसमें चैत्यवासियों के लिये चैत्यवाल कबसे, चैत्यवास क्या सुविहित सम्मत ? चैत्य वास से हानी लाभ ? चैत्तवास में विकार, चैत्यवास के समय समाज का संगठन, संघ व्यवस्था समाज की उन्नत दशा, चैत्यवासी बड़े बड़े धुरंधर आचार्य जिन्हों का समाज एवं राजामहाराजो पर जबर्दस्तप्रभाव चैत्यवास हाटा देने से हानी लाभ इत्यादि ___७- व्यापारी प्रकरण-जैन व्यापारियों के व्यापार क्षेत्र की विशालता-भारत और भारत को बाहर पश्चात्य प्रदेशों में व्यापारियों की पेढियों और व्यापार से लक्ष्मी का वरदान इत्यादि ८--गच्छ प्रकरण--तीर्थकरों की मौजुदगीमें गच्छों की आवश्यकता-आचार्यों के शिष्योंसे पृथक् २ गच्छ, क्रिया भेद के गच्छ, एवंग्रामों के नाम के गच्छ, वर्तमानमें ८४ गच्छ कहे जाते हैं पर इस प्रकरण में ३१० गच्छों का पता लगाया है इत्यादि__-तीर्थ प्रकरण-इसमें प्राचीन अर्वाचीन तीर्थों का वर्णन है। __ १०-पट्टावलीयां-इसमें जितने गच्छों की पट्टावलियो उपलब्ध हुई हैं उनको तथा गच्छों की शाखाए वगैर ही पट्टा-वलियों को भी दर्ज कर दिया है। ११-धर्म का प्रचार-किस प्रान्त में किस समय धर्म का प्रचार किस प्राचार्य द्वारा हुआ और किस कारण वे प्रान्त धर्म विहीन बनी। १२-शाह प्रकरण-जैनोमें जगतसेठ नगरसेठ टीकायत चौधरी चौवटीया वौहरा कोठारी और शाह पद्वियों कब एवं क्यों तथा जैन समाज में ७४॥ शाह क्यों कहे जाते हैं इत्यादि ।। १३–सिका प्रकरण-सिका का चलन कब से प्रारम्भ हुआ है इसके पूर्व व्यापार कैसे चलता था सिक्कों पर धार्मिक चिन्ह इत्यादि। १४-स्तूभ प्रकरण-जिसमें प्राचीन समय में स्तुभ भी बनवाये जाते थे अतः जैनोंने भी बहुत से स्तुभ करवाये थे पर विद्वान लोगो ने भ्रांति से जैन स्तुभों को बौद्धोंकठहरादिये पर शोध खोज करने पर वे स्तुभ जैनों के ही सिद्ध हो गये इत्यादि। १५- गुफा प्रकरण-इसमें गुफाओं का वर्णन है पूर्व जमानेमें जैन श्रमण प्रायः गुफाओं एवं जंगलोंमें ही रहते थे इत्यादि इनके अलावा और भी कई विषय इस ग्रन्थ में लिखे गये हैं फिर भी जैन साहित्य समुद्र है जिसका पार पाना मुश्किल है तथापि अब सेकड़ों ग्रन्थ की वजाय इस एक ही ग्रन्थ पढ़नेसे ही पाठको का काम निकल जावेगा अन्तमें मैं मेरे प्यारे पाठकों से इतना कहदेना आवश्यक समझता हूँ कि एक व्यक्ति पर अनेक कामों की जुम्मावारी होते हुए भी स्वल्प समयमें इतना बड़ा ग्रन्थ लिख कर समाज की सेवामें उपस्थित करदे और उसमें कई त्रुटियो रहजाना यह एक स्वभाविक बात है दूसरा जिस सिलसिलावर को पहली मैंने योजना बनवाई थी पर समय एवं सहायक के अभाव मैं ठीक उसकी पूर्ति कर नहीं सका दूसरा एक तो मेरी उतावल से लिखने की प्रकृति दूसरी इस समय मेरी ६३ वर्षों की अवस्था और नेत्रों की कमजोरी होने से कहीं कहीं अशुद्धि भी रह गई हैं फिर भी साथमें शुद्धिपत्र भी दे दिया गया है पाठक पहले शुद्धिपत्र से पुस्तक शुद्ध कर पढ़े फिर भी यदि कोइ त्रुटि रह गई हो तो मैं मेरे पाठकों से क्षमा की प्रार्थना करता हुआ मेरी प्रस्तावना को समाप्त कर देता हूं शुभम् सा. १-११-१३ अजमेर Jain Education International ज्ञानसुन्दर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy