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________________ सालों में घूम घूम कर कुछ द्रव्यार्थीयों को द्रव्य भी दिया पर बहुत सामग्री एकत्र की-जिसका उपयोग नि जैनजातिमहोदय तथा इस प्रन्थ में किया है।। ७-जब में जैतारण से वीलाड़ा जा रहा था मार्ग में खारिया प्राम आया में तपागच्छ के उपाश्रय में ठहरा वहाँ पर रहीखाते में वंशावलियों के लम्बे लम्बे १०-१२ भुगले पड़े थे मैंने वहां के अग्रेश्वर श्रावकों की आज्ञालेकर ले लिया इसी प्रकार पाली से कापरड़े जाते मार्ग में चौपड़ाग्राम आया वहां मन्दिर के मुहार में महाजनों की बहियों के साथ वंशावली की बहियां तथा कई कागज के भूगले पड़े थे जो बिलकुल रही खाते में थे वहां के श्रावकों की आज्ञा से मैंने ले लिया और एक आदमी कर कापरड़ाजी ले गया उसमें प्रायः तपा गच्छ के श्रावकों की वंशावलियों थी। -जब मैं गोडवाड में विहार कर रहा था तो चांणोदगया वहां भी उपकेश गच्छ की पौसाल थी और वे भी श्रावकों की वंशावलियां लिखते हैं और उनके पास में भी प्राचीन साहित्य काफी था वहाँ से भी मुझे काफी मसाला मिला था इत्यादि मेरे २८ वर्षों का भ्रमन में जहाँ जहाँ इस विषय का साहित्य मिला मैं प्राय अधिक नोट ही करता रहा कारण इतनी सामग्री कहा लिये फिरता रहूँ। बहुतमा साहित्य जो मुझे मिला मैने संग्रह भी किया और कई महात्मा मेरे से ले भी गये थे तथापि मेरे पास आया उसके नोट तो मैं बराबर करता ही रहा। --इनके अलावा भी मेरे भ्रमन में जहाँ जहाँ मैंने ज्ञान भण्डारों का अवलोकन किया तथा महा. त्माओं की पौसाला वालोसे मिला और उन लोगोंसे मुझे जो कुछ उपयोगी जानने योग्य साहित्य मिला उसका में संग्रह करतारहा जितना साहित्य मुझे मिला था उसपर मैंने आंखें मूंदकर अन्ध परम्परासे ही विश्वास नहीं कर लिया था कारण में जानता हूँ कि वंशावलियों में जिस जिस समय की घटनाएं लिखी मिलती हैं वे उस समय की लिखी हुई नहीं है फिर भी कुछ परिश्रम करके संशोधन किया जाय तो उसमें से इतिहास की सामग्री प्राप्त हो सकती है मैंने संशोधन करने पर भी जिस पर मेरा विश्वास हो गया उसको ही काम में ली है। १०--श्रीमान प्रतापमलजी अमोलखचन्दजीवेजवाड़ाके फार्म वाले श्रीमान दुर्गाचन्दजो कर्मावस वाले तथा कुनणमलजो अनराजजी व्यावर वाले श्रापकी मारफत कम्पनी को कागजों का ओर्डर संस्था वालों ने दिया था तथा संस्थासे हुण्डी भी भजिवादी था पर प्रतिबन्धादि कारणसे कम्पनी वाले कागज देने से इन्कार कर दिया हण्डी भी वापिस आग पर उपरोक्त ज्ञानप्रेमियोंने बहत कोशिश कर कागज भिजवाया जिससे ही हमने इस ग्रन्थ को समाज की सेवामे रख सके अतः आपका उपकार माना जाता हैं। .. ११-श्रीमान त्रिभुवनदास लेहरचन्द शाह वड़ोदा वालों की मारफत शशीक्रान्त एण्ड कम्पनीने हमें कई ब्लौक छापने के लिये देकर समाज के द्रव्य की रक्षा की है इस लिये हम आपका आभार समझते है। १२ श्रीमान देवकरणजी रूपकरणजी महता अजमेर वालोंने कागजों का स्टाक अपनी हवेलीमें रखवाया और समय-समय प्रेस वालों को देने में परिश्रम लिया अतः आपकी भी ज्ञान भक्ति हम भूल नहीं सकते हैं। १३- सेठजी हीराचन्दजी संचेती अजमेर वालों ने भी हमारा अजमेर सं० २००० का चतुर्मास में सेवा का अच्छा लाभ उठाया है। १४–श्रीमान् गणेशमलजी वसतीमलजी मिसरीमलजी वैद्य महता जोधपुर वालों ने भी इस ग्रन्थ के लिये प्रबन्ध करने में समय समय अच्छी सुविधाएं कर दी थी। १५-उपरोक्त सज्जनों के अलावा विशेष सहायता मुनि गुणसुन्दरजी की रही कि इसकी सहायता से ही मैंने इस बृहद्ग्रंथ लिखने में सफलता हासिल की है। १६-पण्डित गौरीनाथजी कि आपने कई संस्कृत पट्टा० फार्मे संध करने में सहायता पहुंचाई। १७--श्रीमान् रामलालजी गोयल मैनेजर आदर्श प्रेस ों तो आपने मेरे वर्षों से कार्य दिलचस्पी से करते आये हैं वरन इस ग्रन्थ के लिये तो आपने धार्मिक भावना से अच्छी सहायता एवं समय २ पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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