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प्राइये सज्जनों! दो शब्द मेरे भी पढ़ लीजिये
१-जैन समाज हमेशा से गुणानुरागी रहा है यदि १०० अवगुणों के अन्दर एक भी गुण है तो अवगुणों की उपेक्षा कर एक गुण को ही ग्रहन करेगा। कारण अवगुण तो पहले से ही आत्मा में भरे पड़े है पर गुणों के लिये स्थान खाली है उसकी पूर्ति के लिये गुण ही ग्रहन करते हैं इस पर भ० श्रीकृष्ण और मृत श्वांन का उदाहरण खूब ही विख्यात है ।
२-दूसरा अवगुण ग्राही-यदि १०० गुणों के अन्दर एक भी अवगुण मिल जाता हो तो वह गुणों की उपेक्षा कर अवगुण को ही ग्रहन करेगा क्योंकि उसके हृदय में गुणों के लिये स्थान ही नहीं है जिसके लिये एक सेठानी और बन्दरी का दृष्टांत प्रसिद्ध है।
इन दोनों की परीक्षा के लिये आज हम मुनिश्री का लिखा हुआ यह ग्रन्थ रख देते हैं कि जिसके अन्दर से दोनों महाशय अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार गुण अवगुण ग्रहन कर सकेगा। ... (१) गुणग्राही कहता है कि मुनिजी अच्छे उद्योगी साधु हैं। जैन-मुनियों की दैनिक क्रियाकाण्ड के अलावा विहार, व्याख्यान, जिज्ञासुओं के साथ वार्तालाप, प्रश्नो के उत्तर देना एवं लिखना धर्म चर्चा करना, जैनधर्म पर अन्य लोगों द्वारा किये हुए आक्षेपों का प्रतिकार करना जहाँ धर्म की शिथिलता देखी वहाँ धार्मिक महोत्सवों द्वारा जागृत करना, मन्दिरों की प्रतिष्ठा, यात्रार्थ तीर्थों का संघ निकलाना ज्ञान प्रचारार्थ विद्यालयों की स्थापना करवाना, कुरूढ़ियां निवारणार्थ उपदेश एवं ट्रेक्टों द्वारा प्रचार करना इत्यादि कार्यों से आपको समय बहुत कम मिलना एक स्वभाविक बात है । दूसरा इस समय आपकी आयुः भी ६३ वर्ष की हो चुकी है शरीर में वायु का प्रकोप होने से स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता है और नेत्रों की रोशनी भी कम हो गई है तथापि ऐसा वर्ष शायद ही व्यतीत होता हो कि आपके लिखे हुए छोटे बड़े ८-१० ग्रन्थ मुद्रित नहीं होता हो आपने २८ वर्षों में छोटे बड़े २३५ ग्रन्थ लिख कर प्रकाशित करवा दिये हैं। फिर भी न तो आपके पास कोई सहायक साधु है और न आपके पास हमने ऐसा पण्डित ही देखा है कि आपके कार्य में कुछ मदद पहुंचा सके अर्थात जितना कार्य आप करते हैं वह प्रायः सब अपने हाथोंसे ही करते हैं। हाँ एक कारण आपके पास इतना जबर्दस्त है कि जिसके जरिये आप इतना कार्य कर पाये हैं वह कारण है आपके पास आडम्बर का अभाव इतना ही क्यों पर आपको अपने भक्तोंके द्वारा कभी प्रोपोगेंडा करवाते भी हमने महीं देखा हैं यही कारण है कि न तो आप समाज में लेखक के नाम से प्रसिद्ध हैं और न समाज ने भी आपको इतने अपनाये है और न कभी श्राप हतोत्साही भी होते हैं इतना ही क्यों पर आपके कार्य में कई सज्जनों ने विघ्न भी उपस्थित किये पर आप किसी की परवाह किये बिना अपना कार्य करते ही रहे हैं। मापके ऐसा कोई भक्त श्रावक भी नहीं हैं कि उसकी ओर से ज्ञान प्रचार के लिये द्रव्य की छूट है तब भी आपका कार्य सदैव चलता ही रहता है अतः आपके एकेक कार्यसे गुण ग्रहण करे तो हमारे रिक्त स्थानों की पूर्वि हो सकती है।
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