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________________ - - इसका नतीजा यह हुआ कि वत्त मान स्कूलों में कोमल हृदय के विद्यार्थियों को जो पाठ्य पुस्तकें पढ़ाई जाती हैं उनमें साधारण लोगों के इतिहास पढ़ाये जाते हैं पर जिन जैन वोरों ने एवं उदार नर रत्नों ने भारतके सार्वभौम उपकार करने में अपनो करोड़ों की सम्पत्ति पानी की तरह बहा दी, उनका इसमें प्रायः नामनिशान भी नहीं है। जब तक होनहार विद्यार्थियों को अपने पूर्वजों के गौरवशाली इतिहास को न पढ़ाया जाय तब तक उनकी संतानों की नशों में कदापि खून नहीं उबलेगा । जब कि भारत की सैकड़ों हजारों जातियों में जगत सेठ, नगर सेठ, चौबटिया, टीकायत शाह और पंचों जैसी महान् पदवियाँ यदि मिलो हैं तो एक इस जैन जाति के वीरों को ही मिली हैं। यह कुछ काम करने से मिली हैं या यों ही ? जब काम करने से मिली हैं तो उनके कामों का इतिहास कहां है ? वह इतिहास हमारी पट्टावलीयों वंशावलीयों में ही मिल सकेगा, कि जिन पर हमारे कई एक विद्वानों (1) का विश्वास कम हो रहा है। यह केवल भ्रम या पक्षपातका विमोह है। फिर हमारे पास ऐसा कौनसा साधन है कि जिसके द्वारा हमारे पूर्वजों का इतिहास जनताके सम्मुख रखा जा सके। मेरी तो अब भी यही राय है कि अभी भी समय है जैन विद्वान् एक ऐसी संस्था कायम करें कि जिसके द्वारा जितनी पट्टावलीयां एवं वंशावलियादि इस विषय का जितना साहित्य मिले उन सब को एकत्रित कर उनका अनुसंधान करें और यदि कहीं त्रुटियाँ नज़र आयें तो अन्य साधनों द्वारा संशोधन कर उसके अन्दर से जितना भी तथ्य मिले उनको इतिहास की कसोटी पर कस कर ठीक सिलसिलेवार संकलित कर जनता के सामने रखें तो मेरा पक्का विश्वास है कि विद्वत्समाज ऐसे इतिहास की अवश्य क़दर करेगा । वर्तमान कइ सज्जनोंमें एक यह वढी भारी खूबी है कि आप कुछ काम करते नही और दूसरा कोइ करताहो तो उसके अन्दर कई प्रकार की व्यर्थ त्रुटियों निकालकर विघ्न उपस्थित करदेते हैं अतः काम करने वालों का उत्साह गिर जाता है यहाँ तो वही काम कर सकता है कि किसी के कहने सुनने की परवाह तक नही रखे और गुप चुप अपना काम करता रहे ! हाँ जिस किसी को रुची हो या लाम दिखताहो वह अपनावे यदि ऐसा नहो तो चपचाप रहें । मेरे खयाल से जैनधर्म के लिये कोई भी छोटा मोटा काम करेगा वह जैनधर्म को नुकशान पहुचाने को या जैनागमों से खिलाफ तो करेगा ही नही। काम करने वाले की इच्छा शासन की सेवा करने की ही रहती है हाँ किसी विषय की अनभिज्ञता के कारण कुछ अन्यथा होता हों तो उनको सज्जनता पूर्वक सूचना दें। मेरे खयाल से ऐसा मूर्ख कौन होगा कि जिसके हाथोंसे शासन को नुकसान होता हो और उसका एक भाइ ठीक सुझाव कर रहा हो तो वह इन्कार करे अर्थात् कोह नहीं करेगा यदि इस पद्धतिसे कार्य किया जायतो शासन का न अहितो और न भापसमें किसी प्रकार से मन मलीनता का कारण बने ? प्रस्तावना को मैंने काफी लम्बी चौडी करदी है पर इसमें अनोपयोगी तो कइ बात मेरे खयाल से नही आई होंगी फिर भी इतना बडाग्रन्थ का परिचय करवाना थोडा में हो नही सकता है खैर अब जिन जिन सज्जनों द्वारा सामग्री व सहायता मिली है उनका आभार मानना मैं मेरा कर्तव्य समझ कर उनकी नामावली लिख देता हूँ । सहायकों की शुभ नामावली इस वृहद्ग्रन्थ लिखने में जिन जिन महानुभावों की ओर से मुझे किसी प्रकार से सहायता प्राप्त हुई है उन सज्जनों का उपकार मानना मैं मेरा खास कर्तव्य समझता हूँ और शास्त्रकारों ने भी फरमाया है कि उपकारियों के उपकार को भूल जाय वे लोग कृतघ्नी कहलाते हैं और कृतघ्नी जैसा दूसरा कोई पाप ही नहीं होता है अतः उपकारियों का उपकार मानना जरूरी हैं यों तो मेरे इस कार्य में बहुत सज्जनों का उपकार हुआ है और उन सबका मैं आभार भी समझता हूँ पर जिन महानुभाव ने विशेष सहायता पहुँचाई और इस समय मेरी स्मृति में है उनकी शुभनामावली यहाँ दे दी जाती है । १ - उपकेशगीय यतिवर्य लाभसुन्दरजी जो कई अर्सा से आप रायपुर (सीपी) में ही रहते थे जब १६७३ का मेरा चतुर्मास फलोदी में हुआ था तब खास मेरे से मिलने एवं दर्शनार्थ फलोदी आये थे और मुके उपकेशगच्छ में क्रिया उद्धार किया देख आपको बड़ी खुशी हुई थी कारण जैसे श्राप निर्लोभी निःस्पृही एवं शान्तवृति वाले थे वैसे ही गच्छअनुरागी भी थे आपने कहा था कि मेरे पीछे ऐसा कोई सुयोग्य शिष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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