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________________ तीर्थकर नाम भव च्यवन तिथी च्यवन स्थान गर्भ स्थिति मास--दिन जन्व तिथी ة ४० ا س س वनिता ८-२५ | अयोध्या ९-१ | सावथ्वी अयोध्या س س س س ९-६ i-१९ س س 6-२६ س س श्री ऋषभदेव श्री अजिननाथ श्री सम्भववाथ श्री अभिनंदन श्री सुमतिनाय भी पद्मप्रभ श्री सुपार्श्वनाथ श्री चद्रप्रभ श्री सुविधिनाथ श्री शीतलनाथ श्री श्रेयासनाथ श्री वासुपुज्य श्री विमलनाथ श्री अनंतनाथ श्री धर्मनाथ श्री शातिनाय | श्री कुंथुनाथ श्री अरिनाथ श्री मलिनाथ श्री मुनिसुव्रत श्री नमिनाथ श्री नेमिनाथ श्री पार्श्वनाथ श्री महावीर चैत्र बद. महा शुद महा शुद " मह। शुद २ वैशाख शुद ८ कार्तिक वद.. जेठ शुद १२ पोष वद १२ महा वद ५ महा वद १२ फागण धद १२ कार्ति वद .. महा शुद ३ वैशाख बद १३ महा शुद ३ जेठ बद १३ वैशाख वद. माह शुद. असाहबद सर्वार्थ सिद वैशाख शुद १३ विजय वि. फागण शुद सातवां वे | वैशाख शुद ४ जयंत वि. श्रावन शुद २ महा वदी ६ नौवां प्रैवे भादवा वद. छटा त्रैवे चैत्र वद ५ विजयत वि० फागण वद. आनंत देव वैशाख वद६ प्राणत देव. जेठ वद६ अच्युत देव. जेठ शुद ९ प्राणात देव. ३ वैशाख शुद सहस्र देव. श्रावन वद. प्राणत देव. वैशाख शुद विजय वि० भादवा वद. सर्वार्थ सिद्ध श्रावन वद ९ फागन शुद १२ फागन शुद. जयन्त वि. श्रावन शुद १५ अपराजित आसोज शुद १५ प्राणत देव. ९ कातिक वद १२ | अपराजित वि. चैत्र वद ४ प्रागत देव. आसार शुद६ कौसंबी बनारसी चंद्रपुरी काकंदी भद्धिकपुर सिंहपूरी चपापूरी कपिलपूर भयोध्या रत्नपुरी गजपूर س س 6-२० ८-२१ ९-६ س س س । س س س م س मथुरा | राजगृही मथुरा सौरिपूर वणारसी क्षत्रिय कु जेठ बद श्रावन वद ८ श्रावन शुद ५ पोष वद. चेत्र शुद ३ ة و ८-शेष तीर्थंकरों के तीन तीन भव १-मनुष्य २-देव ३ --तीर्थङ्कर । २- तीर्थर नाम कर्मोपार्जन करने के बीस कारण हैं यथा-अरिहन्त, सिद्ध, प्रवचन ( चसमिति, वीन गुप्ती ) गुरु, स्थविर, बहुश्रुत, तपस्वो, ज्ञानी, दर्शन विनय, श्रावश्यक ( प्रतिक्रमण ), व्रत, तप, ध्यान, दान, ब्यावच्च, समाधि, अपूर्वज्ञानपढ़न, भुतकीभक्ति और शासन की प्रभावना इन बोस बोलों की श्राराधना करने से जीव तीर्थक्कर नाम कर्मोपार्जन करता है। (" श्री ज्ञात सूत्र अ. ८ वॉ)" ३-श्री तीर्थकरदेव के जन्म समय छप्पन दिशा कुमारी देवियां के श्रासन चलायमान होते हैं तब अवधि शान लगा कर जानती है कि देवाधिदेव के जन्म हुआ अतः हमारा कर्तव्य है कि हम जाकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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