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शुद्ध भक्ति के कारण निर्विघ्न समाप्त हो गया और हम निश्चिन्तता पूर्वक अपने साहित्यकार्य में प्रवृत्त रहे । राष्ट्रसेवक श्रीयुत गुलाबचन्द जी और समयज्ञ लाला दलेल सिंह जी सुराणा के साथ ही साथ भावनगर के
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श्रीयुत कान्तिलाल भाई, धीरजलाल भाई का भी उल्लेख आवश्यक है जिन्हों ने हमारे कार्य में सहायता प्रदान
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की है । श्रीबाबू पूर्णचन्द अबरोल इंजीनियर को भी नहीं भूल सकता कि जिन्होंने भक्तिभाव पूर्वक सामग्री जुटाने में समय समय पर सहायता दी है । अन्त में श्रीयुत विद्यासागर विद्यालंकार को भी नहीं भूल सकता जिन्होंने यथाशक्य इस पुस्तक को रंगरूप देने में सहायता प्रदान की है।
श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ श्वेताम्बर
जैन उपाश्रय
चीराखाना, दिल्ली । कार्तिक शुद्धि पूर्णिमा विक्रम सं० २००३, धर्म सं० २५
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विजयेन्द्रसूरि.
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