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अपनी बात हमने गत कुछ वर्षों से जो साहित्यप्रकृति प्रारम्भ की हुई है । उस में हमारी यह भावना रही है कि हम शीध से शीघ्र श्रीमहावीरस्वामी के ऐतिहासिक जीवनको प्रारम्भ करें; तथा जैतइतिहास, नैनधर्म, कथासंग्रह और कल्पसूत्र का शुद्ध हिन्दी अनुवाद आदि भी प्रकाशित करें। इस समय तक हमारी दो पुस्तकें वैशाली' और 'वीरविहारमीमांसा' प्रकाशित हो चुकी हैं। इन पुस्तकों के प्रकाशित होने पर विद्वानों ने उन ग्रन्थों को ऐतिहासिकता और प्रामाणिकता की बहुत प्रशंसा की तथा उसी पद्धति से अन्य प्रसिद्धस्थानों के सम्बन्ध में लिखने के लिये प्रोत्साहित किया। हमने इसी को लक्ष्य में रख कर 'हस्तिनापुर' लिखा है। इसी बीच में हमने 'प्राचीन भारतवर्ष-समीक्षा' लिख डाली है तथा 'मृगांकचरित' भी लिख लिया है, परन्तु मुद्रणालय की अव्यवस्था के कारण हम इन ग्रन्थों को शीघ्र प्रकाशित करने में असमर्थ रहे हैं।
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