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________________ भग प० विजयसागर का भारत वणन किया है, अन्तर केवल इतना है कि इन्होंने दिल्ली से पूर्व दिशा में चालीस कोस पर बताया है और पांच स्तूर के बदले तीन स्तूप बतलाये हैं। यहां यात्रा के लिये खरतरगच्छीय जिनचन्द्रसूर भी पधारे थे, सूरि जी का समय विक्रम संवत् १८०६ से १८५८ है । २३ आधुनिक स्थिति यह क्षेत्र संयुक्तप्रान्त जिला मेरठ में है। मेरठ शहर में दिगम्बर जैनियों की संख्या पर्याप्त है । दिगम्बरों के कई दर्शनीयजैन मन्दिर भी हैं । मेरठ सदर मच्छली बाजार नं०१५६---१६० में श्रीसुमतिनाथ जी का श्वेताम्बर जैनमन्दिर है, और यहां श्वेताम्बरजैनों के अनुमानतः ८०-६० घर भी हैं । मेरठशहर के छीपी तालाब स्थान से हस्तिनापुर के लिये मोटर और तांगे भी जी हो हथिणाउर रलियामणो, जी हो देषण तास जगीस ॥ जी हो शांति कुंथु अरनाथ जी, अवतरिया इण ठाण, जी हो पाँच पांडव इहाँ थया, जी हो पंच चक्रवति जाँण; थूभ तीन तिहां परगडाँ सुणजो प्राणी प्रीत, . --पं०सौभाग्यविजय विरचित तीर्थमाला, ढाल १२;(संवत १७५० में प्रणीत) ३२. खरतरगच्छपट्टावालसंग्रह, पृष्ठ ३८. - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003210
Book TitleHastinapur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1947
Total Pages30
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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