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के चार कल्याणक- च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान हुए । इनके पिता का नाम विश्वसेन और लाता का नाम अचिरादेवी था, वे १६ वें तीर्थकर और पांचवें चक्रवर्ती थे। १७ वें तीर्थकर कुन्थुनाथ के भी चारों कल्याणक यहीं हुए थे, इनके पिता का नाम सूर राजा और माता का नाम श्रीदेवी था। ये छठे चक्रवर्ती थे । १८ वें तीर्थकर अरनाथ के भी चारों कल्याणक यहीं हुए थे और वे चक्रवर्ती थे, इनके पिता का नाम सुदर्शन और माता का नाम देवी था। प्रथम तीर्थंकर ऋषवदेवस्वामी ने जब दीक्षा ली तो उन्हें दीक्षा के बाद एक वर्ष तक नियमानुकूल भिवा नहीं मिली अतएध वे एक वर्ष तक निरन्तर निराहर रहे । तब श्रेयांसकुमार ने भगवान को एक वर्ष पश्चात् इचुरस ( गन्ने के रस ) से पारणा कराया। जहां ऋषभ देवस्वामी के चरण पड़े थे उस स्थान पर श्रेयांसकुमार ने मणियुक्त स्तूप खड़ा कराया । यह कहा जाता है कि इस काल में दान की प्रथा इसी कुमार ने प्रारम्भ की ।
आवश्यकचूर्णिकार के मत से श्रेयांसकुमार ऊपर उल्लिखित राजा भरत का पुत्र था जब कि अन्य ग्रन्थकार इसे
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