________________
॥धी॥ तीर्थाधिराजश्री शत्रन्जय गिरी तीर्थमाला जग जीवन जालिम जावारे तुम्हे श्यां ने रोको रानमां ए देशो। द्वाल:विमला चल वाल्हा वारूरे भले भवियण भेटो भावमां, तुम्हे सेवो ए तीरथ तारू रे जिम नपडो भवना दावमां ॥प्रकरणी।। जग सघलां तीरथ नो नायक तुम्हे सेवो ए
शिव सुख दायकरे ॥१॥ भले-भले ए गिरीराज ने नयणे निहाली
तुम्हे सेवो अविधि दोष टाली रे ॥२॥ भले० मुगता सौवन फूलें वधावी हारे नमीइं
पूजी भावना भावो रे ॥३॥ भले० कांकरे-कांकरे सिद्ध अनंता, संभारो पानें चढ़तारे ।।४।। भले० आदि अजित शांति गौतम केरां,
पहेला पगलां पूजो भलेरांरे ॥५॥ भले० आगे धोलि परव टुकें चढीये,
तिहां भरत चक्री पद नमीइंरे ।।६।। भले० नीली परव अंतरा ले आवे,
नेमि वरदत्त पगलां सोहावे रे ।७।। भले० आदि थुभनमी कुंड कुमारा,
हिंगला जहडे चढो प्यारा रे ॥८॥ भले० तिहा कलि कुड नमी श्रीपास,
चढो मान मोडें उल्लास रे ॥६॥ भले० गुण वंत गिरिना गुण गाई ई,
शाला कुडे विसामो भाई ॥१०॥ भले० तिहांथी मका गली पंथे धसियें,
प्रभु गढ देखी ने उल्लसीये रे ॥११॥ भले० नमीइं नारद अहि मत्तानी मूरती,
वलिंद्र विडवारी रिव सूरतिरे ॥१२॥ भले० तीरथ भूमि देखी सुख जागें,
निरख्यो हेम कुंडनी आगे रे ॥१३॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org