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________________ ५६ तीर्थ माला संग्रह तप गण हवणां अधीश, देवेन्द्र सूरि पेखज्यो जी। कीजो अवगुण त्याग, केवल गुणने देखज्यो जी ॥१०॥ अमदावाद अचंभ, सेठ हेमा-भाइ महागुणी जी। सुरिगये शासन थंभ, सेठ हिये करुणा घणी जो ॥११॥ साधु समतावंत, गुणवंती गुरुणी घणी जी। नर नारी धनवंत, खाण रतन नीइहां सुणी जी ॥१२॥ उगणोशे ने बार, शार चोमासो शेहिरमां जी । मुझ सिद्ध चक्र आधार, पार उतारें लेहरमां जो ॥१३॥ शुक्लाश्विनमझार, नव पद अोलि ऊजलो जी।। आठम दिन गुरुवार, वाणी मुज गंगाजली जी ॥१४॥ शीतल जिनगुणमाल, चन्द्रकला गगर्ने टली जी। पभणी च्यारे ढाल, मन नी प्राशाग्रम फली जी ॥१५॥ तेज विजय जयकार, शांति विजय समता घणी जी। उपगारी अवतार, बलिहारी तस पद तणी जो ॥१६ । तस पद किंकर समान, रत्न विजय मुनि शिवभणी जो । तीरथ माला नाम, कीधी रचना जिनतणी जी ॥१७॥ अलिकोच्चारण पाप, मिच्छामि दुक्कड मो भणी जी। कीज्यो अवगुण माफ, लोज्यो सज्जन गुणमणी जी ॥१८॥ ॥ इति श्री राजनगरनी तीर्थमाला ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003209
Book TitleTirth Mala Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherParshwawadi Ahor
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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