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तीर्थं माला संग्रह
ततएण गूजर संघ सुरोवी, हइडइ अधिकउ भाव धरेवी । जिन पूजन चालु सहु ए ||१३||
भास
पूरव मरुधर गुजराति मेवाडह नारी, अपछरा रूपि अवतरी ए । नव नव श्रृंगारी ॥ १४॥ एक गाई वर गीत रीति रूडी मुख दाखइ निय निय देसह । तरणीय भाव जिन गुरण मुसि भाष ॥ १५ ॥ इम करतां संघ विउ ए, सहु सीहदुग्रारि च्यारह देसह । तरणी नारि-मनि हरिष अपार ॥ १६ ॥ पूरधनी कहइ पहिलु हैं ए, पजिसु जिरणचंद | मारवाडिता लाडि भणइ, घेसेका सुगंद ॥ १७॥ पहिररिण माछा कापडां ए, वलि लाज न दीसइ । श्राछत्र देस तुम्हारडउ ए, इम बोलइ रीसइ ॥ १८ ॥ पुरुषक धोटी पहिरणइए, ऊघउ वलि बोलेइ । ते नर नारि मारवाडी, सरसी कुरण तोलइ ॥ १६ ॥ क्योबपुरी बहु विरुद तीए, तेरा देस पिछाणुं ।
कुआ कंठइ च्यार प्रहरु निसि करहि बिहार ॥ २० ॥ ते परिण स्यारा नीर वास, थल उपरि तेरे भरट भुअंगम । पहिराइ ए कांबली रे रे ॥ २१ ॥ बाद करंता सांभलीरे गूजरनी नाखा बोलइ वइ तुम्ह । सांभलो ए || मम वचन विचारो ||२२|| गूजर देसह उपरइ नहि, को संसार सी पूरव सीमा प्राडि ए मुनिरधार ॥२३॥ सेत पटली पहिराइ ए वारु फूल तांबोल वारु भोजन सालि दालि यनगमता घोल ||२४||
विजय विवेक विचार, सार जिनधर्म भलेउ
त्याइ
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ज्यावाहीरा कनक ॥ २५ ॥
धर्मवंता विविहारी सोहइ । अहिलवाडा नयर सरिस । सुरपुरि मन मोहइ ॥ २६ ॥
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