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तीर्थ माला संग्रह
करें तो हम तीर्थयात्रा' करने तथा चन्द्रप्रभ स्वामी को वन्दन करने धर्म चक्र जाकर आ जाएँ । तब हे गोतम ! उस आचार्य ने दृढ़ मन से सोचकर गम्भीर वाणी से कहा जैसे इच्छा कार से सुविहित साधुओं को तीर्थयात्रा को जाना नहीं कल्पता इस वास्ते जब यात्रा बीत जायगी तब मैं तुम्हें चन्द्रप्रभ का वन्दन करा दूंगा । दूसरा कारण यह भी है तीर्थ-यात्राओं के प्रसंगों पर साधुओं को तीर्थ पर जाने से असंयम-मार्ग में पड़ना पड़ता है । इसी कारण से साधुओं के लिए यात्रा निषिद्ध की जाती है ।
तक्षशिला का धर्मचक्र बहुत काल पहले से हो जैनों के हाथ से चला गया था इसके कारण दो हैं, विक्रम को दूसरी तथा तीसरी शताब्दी में बौद्ध धर्म का पर्याप्त प्रचार हो चुका था, यही नहीं तक्षशिला विश्वविद्यालय में हजारों बौद्ध भिक्षुक तथा उनके अनुयायी छात्र गण विद्याध्ययन करते थे। इस कारण से तक्षशिला के तथा पुरुष पुर (पेशावर) के प्रदेशों में हजारों की संख्या में बौद्ध उपदेशक घूम रहे थे। इसके अतिरिक्त शशेनियन लोगों के भारत
१. यहां 'यात्रा' शब्द तीर्थ पर होने वाले मेले के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है, .. महानिशी थमे ही नहीं, अन्य सूत्रों में भी जैन श्रमणों को तीर्थ यात्रा के लिए भ्रमण करना वर्जित किया है । निशीघ सूत्र की चूणि में लिखा है
'उत्तरावहे धम्म-चक्कं मधुराए देव णिम्भि ओ थूभो । कोसलाए वाजियंत पडिमा तित्थ कराणवा जम्म भूमिओ एवमादि कारणेहिं गच्छन्तो णिक्खाणि तो' ।
(२४३-२) ____ अर्थात्-उत्तरा पथ में धर्मचक्र मथुरा में देव निर्मित स्तूप अयोध्या में जीवंत स्वामी प्रतिमा, अथवा तीर्थंकरों को जन्म भूमियों इत्यादि कारणों से देश भ्रमण करने वाला साधु निष्कारिण कहलाता है। उक्त महानिशीथ के प्रमाण से मेले के प्रसंग पर तीर्थ पर जाना साधु के लिए वजित किया है, परन्तु निशीथ आदि आगमों के प्रमाणों से केवल तीर्थ दर्शनार्थ भ्रमण करना भी जैन श्रमण के लिए निषिद्ध बताया है । जैन श्रमण के लिए सकारण देश भ्रमण करना विहीत है और उस भ्रमण में आने वाली तीर्थ भूमियों का दर्शन वन्दन करना आगम विहीत है । तीर्थ वन्दन के नाम से भड़कने वाले तथा केवल तीर्थ वन्दन के लिए भटकने वाले हमारे वर्तमान कालीन जैन श्रमणों को इस शास्त्रीय वर्णनों से बोध लेना चाहिए ।
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