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________________ तीर्थ माला संग्रह १९ पर होने वाले आक्रमण की जैन पंघ को पहले ही सूचना मिल गई थी कि आज से तीसरे वर्ष में तक्षशिला का भंग होने वाला है इससे जैन संघ धोरे-धोरे तक्षशिला से पंजाब की तरफ आ गया था, कुछ लोग दक्षिण को तरफ पहुँच कर जलमार्ग से कच्छ तथा सौराष्ट्र तक चले गये । जाने वाले लोगों ने अपनी धन सम्पत्ति को ही नहीं, अपनी पूज्य देव मूर्तियों तक को वहाँ से हटा ले गये थे, इस दशा में अरक्षित जैन स्मारकों तथा मंन्दिरों पर बौद्ध धर्मियों ने अपना अधिकार कर लिया। तक्ष शिला का धर्मचक्र जो चन्द्रप्रभ का तीर्थ माना जाता था उसको भी बौद्धों ने अपना लिया, था और उसे "बोद्धि सत्वों चन्द्र प्रभ" का प्राचीन स्मारक होना उद्घोषित किया । बौद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग जो कि विक्रम की षष्ठी शताब्दी में भारत में आया था, अपने भारत यात्रा विवरण में लिखता है "यहां पर पूर्व काल में "बौद्धिसत्व चन्द्र प्रभ" ने अपना मांस प्रदान किया था, जिसके उपलक्ष्य में मौर्य सम्राट अशोक ने उसका यह स्मारक बनवाया है।" उक्त चीनी यात्री के उल्लेख से यह तो निश्चित हो जाता है, कि धर्मचक्र विक्रमीय छटी शताब्दी के पहले ही जैनों के हाथ से चला गया था, निश्चित रूप से तो नहीं कह सकते फिर भी यह कहना अनुचित न होगा, कि शशेनियन लोग जो ईसा की तीसरी शताब्दी में प्राक्रामक बनकर तक्षशिला के मार्ग से भारत में आए, उसके लगभग काल में ही धर्मचक्र बौद्धों का स्मारक बन चुका होगा। (५) अहिच्छत्रा पार्श्वनाथ___ आचाराङ्ग नियुक्ति सूचित पार्श्वनाथ अहिच्छत्रा नगरी स्थित पार्श्वनाथ है, भगवान् पार्श्वनाथ प्रवजित होकर तपस्या करते हुए एक समय कुरुजांगल देश में पधारे । वहां शंखावली नगरी के समीप वर्ती एक निर्जन स्थान में आप ध्यान निमग्न खड़े थे तब उनके पूर्व भव के विरोधी कमठ नामक असुर ने आकाश से घनघोर जल बरसाना प्रारम्भ किया, बड़े जोरों को वृष्टि हो रही थी, कमठ की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003209
Book TitleTirth Mala Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherParshwawadi Ahor
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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