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सम्राट्-परिचय अन्यायी था, वैसा ही, उद्धत, कठोरभाषी, निष्ठुर हृदयी और पतित चरित्रवाला भी था । साधारणसे साधारण मनुष्यके लिए भी जब ये दु. गण घातक होते हैं तब जो शासन-कर्ता है उसके लिए तो निःसंदेह होवे ही । अस्तु । अकबर बहरामखाँके साथ वैमनस्य न हो इस बातका पूरा खयाल रखता था। मगर कहावत है कि,-' ज्यादा थोड़ेके लिए होता है।' अथवा ' अति सर्वत्र वर्जयेत् ' अन्तमें अकबरकी इच्छा हुई कि, वह सम्पूर्ण राज्यसत्ता अपने हाथमें ले; परन्तु इस काममें उसने जल्दी करना ठीक न समझा । युक्तिपूर्वक काम लेना ही उसे ठीक जचा ।
एक वार अकबर कुछ आदमियोंको साथ ले कर शिकारके लिए चला । शिकारगाहहीमें उसे अपनी माताकी बीमारीकी खबर मिली । खबर सुन कर वह दिल्ली गया । वहाँ जा कर उसने अपने सारे राज्यमें यह ढिंढोरा पिटवा दिया कि,-" मैंने राज्यका सारा कामकाज अपने हाथमें ले लिया है । इसलिए मेरे सिवाय किसी दूसरेकी आज्ञा आजसे न मानी जाय ।” सन् १९६० ईस्वीमें जब यह ढिंढोरा पिटवाया तब उसने बहरामखाँके पास भी एक नम्रतापूर्ण पत्र भेजा । उसमें लिखा--" आज तक मैंने आपकी सज्जनता और विश्वास पर सारा राज्य भार छोड़ कर निर्भयताके साथ आनंदका उपभोग किया । अवसे राज्यका भार मैंने स्वयं उठाया है। आप मक्का जाना चाहते थे; अतः अब आप खुशीके साथ मक्का तशरीफ ले जायँ । आपको भारतवर्षका एक प्रान्त भेट किया जायगा । आप उसके जागीरदार होंगे। उसकी जो आमदनी होगी उसे आपके नौकर आपके पास भेज दिया करेंगे । ” इससे बहरामखाँ अकबरका दुश्मन बन गया । वह मक्काका नाम ले कर आगरेसे रवाना हुआ। मगर मका न जा कर पंजाबमें गया, कारण
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