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________________ APRAANAM RAKAAMANMMMMMMAR सूरीश्वर और सम्राट् । रक्खा था। अकबरके राजत्वके आरंभमें हिन्दुओंके रिवाजोंका प्रभाव बहुत ही कम पड़ा था। उसके रिवाज जैसे तीन भागोंमें विभक्त थे वैसे ही उसके नौकर-हुजूरिए भी दो भागोंमें विभक्त थे। एक भागमें थे तुर्क और मांगल अथवा चगताई और उजबेग व दूसरे विभागमें थे ईरानी । कहा जाता है कि, अकबर अपने समयमें शेरशाहके वक्तके कानूनोंको विशेषकरके व्यवहार में लाया था। और नहीं तो भी उसने आय-विभाग ( Revenue-Department ) में तो जरूर ही सुधार किया था। यह शेरशाह वही है कि, जिसने हुमायुंको सन् १९३९ ईस्वीमें चौसा और कन्नौज के पास परास्त किया था। उसका असल नाम शेरखाँ था मगर गद्दी पर वह शेरशाह नाम धारण करके बैठा था । इस शेरशाहने सन् १९४५ ईस्वी तक दिल्लीमें रह कर कई सुधार किये थे। कइयोंका मत है कि, अकबरने दीवानी और फौजदारीसे संबंध रखनेवाले खास कानून नहीं बनाये थे । न उससे संबंध रखनेवाले रनिस्टर या खतौनिया आदि ही बनाई थीं । करीब करीब सब बातें वह जवानी ही करता था और किसीको यदि कुछ दंड देता था तो वह ' कुरानशरीफ' के नियमानुसार देता था। .. अकबर अठारह बरसका हुआ तब तक उसके संरक्षकका कार्य बहरामखाँ करता था । इतना ही नहीं यदि यह कहें कि, राज्यकी पूरी सत्ता बहरामखाँके हाथमें थी तो अनुचित न होगा। बहरामखाँ पर अकबरका भी पूर्ण विश्वास था। मगर उस विश्वासका बहरामखाँने दुरुपयोग किया था। यद्यपि अकबर पीछेसे यह जान गया था कि, बहरामखाँ महान् क्रूर और अन्यायी है; यह जानते हुए भी वह हरेक बातको उपेक्षाकी दृष्टिसे देखता रहा, तथापि बहरामखाँके अन्यायकी मात्रा प्रति दिन बढ़ती ही रही थी। बहरामखाँ जैसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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