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________________ सम्राद-परिचय। तभीसे अच्छी हालतमें आ गये थे और अपने अपने राज्यमें स्वाधीनतासे राज्य करते थे । मालवा और गुजरात तो बहुत पहिले ही से दिल्लीके अधिकारसे निकल गये थे । गोंडवाणा और मध्यप्रान्तके राज्य अपने उन्हीं सर्दारोंका सम्मान करते थे कि जो अपने ऊपर किसीको भी नहीं समझते थे। ओरिसाके राज्यने तो किसीको स्वामी करके माना ही न था । दक्षिणमे खानदेश, बराड़, बेदर, अहमदनगर, गोलकांडा और बीजापुर आदिमें वहाँके सुल्तान ही राज्य करते थे। वे दिल्ली के बादशाहके नाम तककी परवाह नहीं करते थे । दक्षिणमें वहाँसे आगे बढ़ कर देखेंगे तो मालूम होगा कि, कृष्णा और तुंगभद्रासे ले कर केपकुमारी तकका प्रदेश विजयनगरके राजाके अधिकारमें था। उस समय विजयनगरका राज्य बहुत ही जाहोजलाली पर था। गोवा और ऐसे ही दूसरे कुछ बंदरों पर पोर्तुगीजोंने कब्जा कर रक्खा था । अरबी समुद्रमें उनके जहाज चलते थे। उत्तरमें काश्मीर, सिंध और विलोचिस्तान तथा ऐसे ही कई दूसरे राज्य बिलकुल स्वाधीन थे। उपर्युक्त कथनसे यह स्पष्ट है कि अकबर जब गद्दी पर बैठा था उस समय हिन्दुस्थानका बहुत बड़ा भाग स्वाधीन था। अकबरके अधिकारमें बहुत ही कम प्रान्त थे । इससे उसके हृदयमें दूसरे प्रदेशोंको अपने अधिकारमें करनेकी इच्छाका उत्पन्न होना स्वाभाविक था। अकबरने अपनी कचहरीके रिवाज तीन प्रकारके रक्खे थे। १ तुर्की, २ मांगल और ३ ईरानी । ऐसा करनेका सबब यह था कि,-अकबर पितृपक्षमें तैमूरलंगके खानदानका था। तैमूर तुर्की था। इसलिए उसने तुर्की रिवाज रक्खा था । मातृपक्षमें वह चंगेजखाँके वंशका था । चंगेजखाँ मुगल था, इसलिए उसने माँगल रिवाज भी रक्खा था और अकबरकी माता ईरानकी थी इसलिए उसने ईरानी रिवाज भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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