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________________ सम्राट्-परिचय। और अपनी बची बचाई फौज ले कर पंजाबमें अकबरके पास भाग गया। दिल्लीकी गद्दी प्राप्त कर हेमको असीम आनंद हुआ। दिल्ली ले कर ही उसका लोभ शान्त नहीं हुआ। पंजाबको लेनेकी इच्छासे वह पंजाबकी ओर रवाना हुआ। उधर अकबरको खबर मिली कि, हेमूने दिल्ली और आगरा ले लिये हैं । इससे उसको बहुत चिन्ता हुई। उसने अपनी 'समरसभा ' के मेम्बरोंको जमा किया और उनसे पूछा कि, अब क्या करना चाहिए ? बहुतसोंने तो यही सलाह दी कि, जब चारों तरफसे हमें दुश्मनोंमे घेर लिया है तब हमें चाहिए कि, इस वक्त हम काबुलका राज्य ले कर चुप हो रहें । मगर बहारामखाँको यह सलाह पसंद न आई । उसने कहा,--" नहीं हमें दिल्ली और आगरा फिरसे अपने अधिकारमें लेना चाहिए । " अन्तमें बहरामखाँकी सलाह ही ठीक रही। अकबरने हेमूको परास्त कर दिल्ली पर अधिकार करनेके लिए दिल्लीकी और प्रस्थान किया । मार्गमें तरादीबेगखाँ अपने कुछ सैनिकों सहित मिला। बहरामखाने उसे धोखा दे कर मार डाला । वहाँसे आगे कुरुक्षेत्रके प्रसिद्ध मैदानमें हेमू और अकबरकी फौजकी लड़ाई हुई । लड़ाईमें बहरामखाँका एक तीर हेमूको लगा। हेमू १ तरादीबेगखाँ ( तार्दिबेग ) को किसने मारा ? इस विषयमें इतिहास लेखकोंके भिन्न २ मत हैं। इन मतीका श्रीयुत बंकिमचंद्र लाहिडीने अपनी 'सम्राट अकबर' नामकी बंगला पुस्तकमें उल्लेख किया है । बदाउनी कहता है कि,-"बहरामखोंने अकबरकी सम्मतिसे उसे मारा था।" फरिश्ताने लिखा है कि,-" बहरामखाने अकबरको कहा,-आप बहुत ही दयाल हैं। यदि आपको कहता तो आप उसे क्षमा कर देते । इसलिए आपकी इजाजत लिए विना ही मैंने उसे मार डाला है। यह बात सुन कर अकबर काँप उठा।" भादि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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