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________________ सूरीश्वर और सम्राट्। था । अकबर उस समय बहरामखाँके निरीक्षण सिकंदरसूरके साथ युद्ध करनेमें लगा हुआ था । हुमायुं जब मरा था उस समय दिल्लीका हाकिम तरादीबेगखाँ था। कहा जाता है कि, उसने सत्रह दिन तक तो हुमायुके मृत्यु-समाचार लोगोंको मालूम भी न होने दिये । कारण यह था कि,-अकबरको राज्य मिलनेमें कहीं विघ्न न खड़ा हो जाय । इन्हीं दिनोंमें उसने ये समाचार एक विश्वस्त मनुष्यद्वारा पंजाबमें अकबरके पास भेज दिये थे । पितृ-वत्सल अकबरने जब ये शोकसमाचार सुने तब उसे बहुत दुःख हुआ । उसने अपने पिताकी समाधि पर एक ऐसा उत्तम मंदिर बनवाया कि जो आज भी लोगोंके दिलोंको अपनी ओर खींच लेता है। दिल्लीमें जितनी चीजें देखने लायक हैं उन सबमें यह मंदिर अच्छा समझा जाता है । पिताके मरते ही उसे गद्दी नहीं मिल गई थी। गद्दी प्राप्त करनेके लिए उसे बहुत बड़ी लड़ाई करनी पड़ी । यद्यपि पहिले १४ फर्वरी सन् १९५६ ईस्वीके दिन 'गुरुदासपुर' जिलेके 'कलानौर' गाँवमें उसका राज्याभिषेक हुआ था, तथापि दिल्लीके राज्याभिषेकमें बहुतसा वक्त लग गया । दिल्लीका राज्य उसे शीघ्र ही नहीं मिला। इसका कारण यह था कि,-जिस समय हुमायुं मरा था उस समय मुसलमानोंमें आपसी झगड़े बहुत बढ़ गये थे। इस आपसी कलहसे लाभ उठा कर दिल्लीका राज्य अपने अधिकारमें कर लेनेके लिए हेमू-जो पहिले आदिलशाहका मंत्री था-का जी ललचाया था। उसकी इच्छा थी कि, वह दिल्लीका राजा बन कर विक्रमादित्य हेमूके नामसे प्रसिद्ध हो । वह 'चुनार' और 'बंगाल' के विद्रोहोंको शान्त करता हुआ आगे बढ़ा था। आगरा अनायास ही उसके हाथ आ गया और दिल्ली जीतनेके लिए उसने कदम बढ़ाया था । उस समय दिल्लीकी हुकूमत तरादीबेगखाँके हाथमें थी। वह हेमूसे हारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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