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________________ सम्राट-परिचय। AMAVAJANANAurvarcmro है कि वे आध्यात्मिक संस्कारोंको दूर कर संसारमें इतनी अनीति और अत्याचार करें ? जिस पृथ्वीके लिए, मनुष्य अपना सर्वस्व खो देते हैं वह पृथ्वी क्या कभी किसीके साथ गई है ? गोंडककी महारानी साहिबा 'श्रीमती नंदकोरबा ' अपने 'गोमंडल परिक्रम' नामकी पुस्तकमें लिखते हैं: "लोग पृथ्वीपति बननेके लिए कितने हाथ पैर पछाड़ते हैं ? कितनी खराबियाँ करते हैं ? कितना लोहका पानी करते हैं ? और कितना अन्याय करते हैं ? मगर यह पृथ्वी क्या किसीकी होके रही है ? पृथ्वीके भूखे राजा लोग यदि इसका विचार करें तो संसारसे बहुतसा अनर्थ कम हो जाय।" __ राज्य प्राप्त करनेके लिए हुमायुको कितना कष्ट उठाना पड़ा था ? कितनी भूख, प्यास सहनी पड़ी थी ? दूसरोंका आश्रय लेना पड़ा था। पीछेसे वहाँ भी तिरस्कृत होना पड़ा था। अपने प्यारे पुत्रको छोड़ कर भागनाना पड़ा था। सगे भाइयों और स्नेहियोंके साथ वैर-विरोध करना पड़ा था। और तो क्या अपने सहोदरकी आँखे फोड़ने और उसकी आँखोंमें नींबू और नमक डालनेके समान क्रूर कार्य भी करना पडा था। इतना करने पर भी हुमायुं क्या सदाके लिए दिल्लीके राज्यका उपभोग कर सका ? नहीं। दिल्लीकी गद्दी पुनः प्राप्त करनेके छः ही महीने बाद २४ जनवरी सन् १९९६ ईस्वीके दिन उसे अपनी सारी आशाओंको इस संसारकी सतह पर छोड़ कर चल देना पड़ा; अपने पुस्तकालयके जीनेसे जब वह नीचे उतरता था उसका पैर फिसल गया और उसीसे उसके प्राणपखेरू उड़ गये। उस समय अकबर पंजाबमें था। क्योंकि वह सन् १५५५ ईस्वीके नवम्बर महीने में पंजाबका सूबेदार बना कर वहाँ भेजा गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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