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सूरीश्वर और सम्राट्। समझता था। कुदरतने शूरताके और बहादुरीके जो गुण उसे बख्शे थे वे छिपे हुए नहीं रहे थे। जबसे वह थोड़ा होशियार हुआ तभीसे वह युद्धमें जाने और अपने पिताकी सहायता करने लगा था। यहाँ हम उसकी प्रारंभिक बहादुरीका एक उदाहरण देंगे।
एक बार हुमायुं बहरामखाँ सहित पाँच हजार घुड़सवारोंको साथ ले कर काबुलसे रवाना हुआ। जब वह पंजाबमें सरहिंदके जंगलोंमें पहुँचा तब सिकंदरसूरकी सेनाके साथ उसकी मुठभेड़ हो गई। हुमायुका सेनापति तो सिकंदरकी सेनाको देखते ही हताश हो गया। उसका मन यह विचार कर एकदम बैठ गया कि, इतनी जबर्दस्त सेनाके साथ युद्ध कैसे किया जायगा ? उस समय हुमायुं और उसके सेनापतिका अकबरकी वीरताहीने साहस बढ़ाया था। अकबरहीने उन्हें बहादुरी भरी बातें कह कर उत्तेजित किया था। इतना ही नहीं उसने खुद ही आगे बढ़ कर सेनापतिका काम करना प्रारंभ किया था। परिणाम यह हुआ कि अकबरकी सहायता और वीरतासे हुमायुंको उस लडाईमें फतेह मिली। पाठकोंको यह जान कर आश्चर्य होगा कि, उस समय अकबरकी आयु केवल बारह वरसहीकी थी। तत्पश्चात् ई० स० १५५५ में हुमायूने क्रमशः दिल्ली और आगराकी हुकूमत भी ले ली।
लाखों करोड़ों मनुष्योंको कत्ल कर, खूनकी नदियाँ बहाकर, या हलकेसे हलका नीचता पूर्ण कार्य करके जो राजा बने थे वे क्या कभी हमेशा राना रहे हैं ? विनाशी और शत्रुता पैदा करानेवाली जिस राज्यलक्ष्मीके लिए मनुष्य अन्याय करता है; अनीति करता है। लाखों मनुष्योंके अन्तःकरण दुखाता है वह लक्ष्मी क्या कभी किसीके पास हमेशा रही है ? जो भावीकी बड़ी बड़ी आशाओंके हवाई किले बना, महान अनर्थ कर राज्य प्राप्त करते हैं वे यदि अपने आयुकी विनश्वरताका और क्षणिकताका विचार करते हों तो क्या यह संभव
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