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सूरीश्वर और सम्राट्। उसे प्रारंभिक जीवन में कष्ट हुए इसका वास्तविक कारण उसके पिता हुमायुंके भाग्यकी विषमता थी। ... हुमायुको अमरकोटके राजाने महान विपत्तिके समय सहायता दी थी; परन्तु उसके साथ भी उसकी प्रीति बहुत दिनों तक नहीं टिकी । कारण-हुमायुके एक नौकरने अमरकोटके राजाका अपमान किया; परन्तु हुमायूने उसका प्रतीकार नहीं किया। इससे अमरकोटका राजा क्रुद्ध हुआ । उसने हुमायुंके पाससे अपनी सेना वापिस ले ली। इससे हुमायु फिरसे पहिलेहीसा असहाय हो गया । वह अपनी स्त्री
और पुत्र ( अकबर ) को ले कर कंधारकी तरफ रवाना हुआ। उस समय वहाँका राजा उसका भाई कामरान था । उसने और उसके भाई अस्करीने हुमायुको पकड़नेका यत्न किया । हुमायुं यह समाचार सुन, पुत्र अकबरको वहीं छोड़, अपनी स्त्रीको ले भाग गया। अकबर बचपनहीमें माता पितासे भिन्न हुआ और शत्रुके हाथों चढ़ गया । अस्करीने बालक अकबरको ले जा कर अपनी स्त्रीके हवाले किया और उसीके सिर उसके लालन-पालनका भार दिया ।
. हुमायूँ वहाँसे भाग कर ईरानमें गया। वहाँके राजाकी सख्तीसे उसे शीआधर्म ग्रहण करना पड़ा। शीआधर्म ग्रहण करनेसे ईरानका बादशाह हुमायुसे खुश हुआ । हुमायुंने उसकी खुशीका लाभ उठाया। कुछ द्रव्य और सेनाकी सहायता ले कर उसने कंधार और काबुल पर चढ़ाई की। इस लड़ाईमें पहिली वार हुमायुकी जीत हुई । उसने कंधार ओर काबुलको जीत कर अपने प्यारे पुत्रको प्राप्त कर लिया; मगर दूसरीबारके युद्धमें वह हार गया । कामरान जीता । उसने कंधारके साथ ही काबुल और अकबरको उससे वापिस छीन लिया।
एक बार हुमायु काबुलके किले पर तोपके गोले छोडनेकी तैयारी
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