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सम्राट् - परिचय |
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गया था उस मास्टरने अकबरको अक्षरज्ञान न करा कर कबूतरोंको पकड़ने और उड़ानेका ज्ञान दिया । एक एक करके अकबरको पढ़ाने के लिए चार शिक्षक रक्खे गये; परन्तु अकबरने उनसे कुछ भी नहीं सीखा। कहा जाता है कि, अकबरने और तो और अपना नाम लिखने बाँचने जितना भी लिखना पढ़ना नहीं सीखा था ।
इस संबंध में भी विद्वानोंमें दो मत हैं। कई कहते हैं कि, वह लिख पढ़ सकता था और कई कहते हैं कि, यह अक्षरज्ञान - शून्य था । चाहे उसे लिखना पढ़ना आता था या नहीं, मगर इतना जरूर है कि, वह महान विचक्षण था और पंडितोंके साथ वार्ताविनोद करनेमें बड़ा ही कुशल था । सारे ही विद्वान् इस बातको स्वीकार करते हैं । भारतमें ऐसे पुरुष क्या नहीं हुए हैं कि, जो सर्वथा अक्षर - ज्ञान विहीन होनेपर भी महापुरुष हुए हैं; उन्होंने छोटे बड़े राज्य - तंत्र चलाये हैं। इतना ही क्यों, वे बड़े बड़े वीरता के कार्य भी कर गये हैं । इसी तरह अकबर ने भी अक्षर ज्ञान - शून्य हो कर भी यदि बड़े बड़े महत्व के कार्य किये हों तो इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है । विद्वानोंका मत है कि, यद्यपि अकबर स्वयमेव लिखना पढ़ना नहीं जानता था, तथापि ग्रंथ सुननेका उसे बहुत ही ज्यादा शौक था, इसलिए दूसरोंसे ग्रंथ बँचवा कर आप सुना करता था । कई कविताएँ उसने कंठस्थ कर रक्खी थीं । मुख्यतया हाफिज और जलालुद्दीन रूमीकी कविताएँ उसे ज्यादा पसंद थीं। कहा जाता है कि, यही सबब था जिससे वह अपनी जिन्दगीमें धर्मांध नहीं बना था ।
बड़ोंको बड़े ही कष्ट होते हैं और बड़ी ही चिन्ताएँ होती हैं । यह एक सामान्य नियम है। अकबरने जैसे अपनी पिछली जिन्दगी अमन चैन और ऐशो - इशरत में बिताई थी, वैसे ही उसे अपने प्रारंभिक जीवनमें बहुत ही ज्यादा कष्टोंका मुकाबिला करना पड़ा था
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