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________________ सूरीश्वर और सम्राट् । ~~~rmmmmmmmmmmm. बहिर्ने बुद्धिमान और धर्मपरायणा थीं। वे भली प्रकारसे समझती थीं कि,-दीक्षा मनुष्यके कल्याणमार्गकी अन्तिम सीमा है । इससे उन्होंने यद्यपि भाईकी भावनाका विरोध न किया तथापि, मोहवश स्पष्ट शब्दोंमें, दीक्षा लेनेकी अनुमति भी नहीं दी। इस समय उनका मन 'व्याघ्रतटी' न्यायके समान हो रहा था । अतः उन्होंने मौन धारण की । उनके इस मौनसे हीरजीको पहिले कुछ नहीं सूझा; परन्तु अन्तमें उन्होंने सोचा कि,-' अनिषिद्धिमनुमतम् ' इस न्यायके अनुसार मुझे आज्ञा मिल चुकी है। अन्तमें उन्होंने संवत् १५९६ ( ई० सन् १५४० ) के कार्तिक सुद २ सोमवारके दिन पाटनहीमें श्रीविजयदानसूरिके पाससे 'दीक्षा' ले ली । उस समय उनका दीक्षा-नाम 'हीरहर्ष' रक्खा गया। हीरजीके साथ ही अन्य अमीपाल, अमरसिंह, ( अमीपालके पिता) कपूरा ( अमीपालकी बहिन ) अमीपालकी माता, धर्मशीऋषि, रूडोऋषि, विजयहर्ष और कनकश्री इन आठ मनुष्योंने भी दीक्षा ली थी। अबसे हम हीरजीको मुनि हीरहर्षके नामसे पहिचानेंगे । वर्तमान समयमें जैसे-नवद्वीप (बंगाल) न्यायका और 'काशी' 'व्याकरण का केन्द्र प्रसिद्ध है वैसे ही उस समय न्यायका केन्द्रस्थान दक्षिण समझा जाता था। यानी दक्षिण देशमें न्यायशास्त्रके अद्वितीय विद्वान् रहते थे। जैसे हीरहर्षमुनिकी बुद्धि तीक्ष्ण थी, वैसे ही उनकी विद्याप्राप्त करनेकी इच्छा भी प्रबल थी । इससे विजयदानसूरिने उन्हें न्यायशास्त्रका अध्ययन करनेके लिए दक्षिणमें जानेकी अनुमति दी। वे श्रीधर्मसागरजी और श्रीराजविमल इन दोनोंको साथ ले कर दक्षिणके सुप्रसिद्ध नगर देवगिरि गये थे। वहाँ बहुत दिन १ वर्तमानमें देवगिरिको दौलताबाद कहते हैं । एक समय यहाँ यादव राज्य करते थे । ई० सन् १३३९ में इसका नाम दौलताबाद पड़ा था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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