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सूरीश्वर और सम्राट् । ('दरहामा उस समयकी चलनका एक सिक्का था ) ईस्वी सन्की चौदहवीं और पन्द्रहवीं शताब्दिमें भी फीरोज़शाह तुगलकने कानून बनाया था कि, गृहस्थोंके घरोंमें जितने बालिग मनुष्य हों उनसे प्रति व्यक्ति धनियोंसे ४०, सामान्य स्थितिवालोंसे २०, और गरीबोंसे १० टाँक 'जज़िया' प्रति वर्ष लिया जाय । आगे भी यानी जिस सोलहवीं शताब्दिकी हम बात कहना चाहते हैं उसमें भी यह 'जज़िया' वर्तमान था।
संक्षेपमें यह है कि भारतवर्षकी राष्ट्रीय स्थिति भयंकर थी। उसमें भी जिस प्रान्तके लिए हम खास तरहसे इस ग्रंथम कहना चाहते हैं उस प्रान्तकी स्थिति तो बहुत ही खराब थी। गुजरातके सूबेदारोंकी 'नादिरशाही ' गुजरातकी प्रजाको बहुत ही बुरी तरहसे सताती थी। इच्छानुसार जुर्माना, इच्छानुसार सजा, इच्छानुसार कर, और तुच्छ तुच्छ बातोंमें धरपकड़ होती थी। इनसे प्रजा बहुत व्याकुल हो रही थी। उस समय प्रत्येक व्यक्तिका हृदय, राष्ट्रीय स्थितिको सुधारनेवाले किसी महान् प्रतापी पुरुषके-सम्राट्के आगमनकी प्रतीक्षा कर रहा था। केवल गुजरात ही नहीं बल्कि समस्त भारतवर्ष यही भावना कर रहा था। सारी आर्य प्रजा एक स्वरसे रातदिन, सोते जागते, उठते बैठते अपने अपने इष्ट देवोंसे यही विनय करती थी कि.---'प्रभो ! इन दुःखके दिनोंको दूर करो ! इस भयंकर अत्याचारको भारतसे उठा लो ! हमारे आर्यत्वकी रक्षा करो! देशमें शान्तिका राज्य स्थापन करो ! हम अन्तःकरण पूर्वक चाहते हैं कि, इस वीरप्रसू भारतमाताकी कूखसे, फिरसे, तत्काल ही एक ऐसा महान् वीर पुरुष उत्पन्न हो जो देशमें शीघ्रताके साथ शान्तिका राज्य स्थापन करे और हमारे ऊपर होनेवाले इस जुल्मको जड़से खोद डाले ! ओ भारत माता :. क्या तू शीघ्र ही ऐसा
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