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________________ परिस्थिति। mura असाधारण प्रभाव पड़ा है-छोटे, बड़े धनी, गरीब; राजा, प्रजा प्रत्येकको उसका परिणाम भोगना पड़ा है-तब जिस समय इसकी आँखोंके सामने युद्ध होते थे रात दिन अत्याचार होते थे उस समय यह यदि कष्टसे दिन निकालती थी, सुखकी नींद न ले सकती थी, रात, दिन इसका हृदय काँपता रहता था तो इसमें आश्चर्यकी बात ही कौनसी है ? लगभग ईस्वी सन्की सोलहवीं शताब्दिके आरंभके ४० बरसों तक बल्कि उसके बाद भी कुछ समय तक भारतवर्षके भिन्न भिन्न भागोंमें लड़ाई और लूट-खसोट होती ही रही थी । इससे लोगोंको अपने जानोमालकी रक्षा करना बहुत ही कठिन हो रहा था। जिस 'जजिया' का उपर नाम लिया गया है, वह कोई साधारण कर नहीं था। कई विद्वानोंका मत है कि, आठवीं शताब्दिमें मुसलमान बादशाह कासिमने भारतीय प्रजा पर यह कर लगाया था । पहिले तो उसने आर्यप्रजाको इसलामधर्म स्वीकार करनेके लिए विवश किया । आर्य प्रजाने अटूट धन दौलत दे कर अपने आर्यधर्मकी रक्षा की। फिर हर साल ही प्रजासे वह रुपया वसूल करने लगा। प्रति वर्ष जो द्रव्य वसूल किया जाता था, उसका नाम 'जज़िया' था। कुछ कालके पश्चात् यहाँ तक हुक्म जारी हो गये थे कि,-" आर्य मजाके पास खानेपीनेके बाद जो कुछ धन माल बचे वह सभी 'जज़िया' के रूपसे खजानेमें दाखिल करवा दिया जाय ।" फरिश्तेके शब्दोंमें कहें तो-" मृत्यु तुल्य दंड देना ही 'जज़िया' का उद्देश्य था।" ऐसा दंड दे कर भी आर्य प्रजाने अपने धर्मकी रक्षा की थी। यह बात भी नहीं थी कि, ऐसा असह्य 'जजिया' थोड़े ही दिन तक चल कर बंद हो गया हो। 'खलीफ़ उम्रने' इसको ( जजियाको ) तीन भागोंमें विभक्त किया था। उसके वक्त प्रति मनुष्य वार्षिक ४८, २४ और १२ दरहाम लिये जाते थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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