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सूरीश्वर और सम्राट् ।
न केवल गुजरातहीके लिए बल्कि समस्त भारतके लिए सुखसे रोटीका ग्रास खानेका वक्त नहीं आया था । देशकी अशान्ति उस समय तक दूर नहीं हुई थी । भारतकी मनमोहक लक्ष्मी देवी एकके बाद दूसरे मुसलमान बादशाहको ललचाती ही रही थी । जगह जगह अधिकार जमा कर बैठे हुए पठानोंका अत्याचार अभी शान्त भी नहीं हुआ था कि, उसी समय कुछ ही काल पहिले भारतको सता कर गये हुए तैमूरलंगके एक वंशधर बाबरकी इस ओर दृष्टि पड़ी। उसने सहसा काबुलके मार्ग पर अधिकार कर भारतमें प्रवेश किया। इतना ही नहीं उसने और उसके पुत्र हुमायुने बार बार आक्रमण कर भारतीय प्रजाको खूब लूटा, सताया और बरबाद किया । अन्तमें उसने श्रापभूत पठानोंको भी परास्त किया और भारतमें अपना अधिकार पूर्ण रूपसे जमा लिया।
बाबरके राज्यकालमें भी भारत तो हतभाग्यका हतभाग्य ही रहा था। देशमें लेशमात्र भी शान्ति नहीं हुई थी। एक तो फतेहपुर-सीकरीकी तरफ मुसलमानों और राजपूतोंमें घोर युद्ध हो रहे थे, दूसरे लगभग सारे देशमें अराजकता होनेसे लूट खसोट होती थी, तीसरे भिन्न भिन्न प्रान्तोंके सूबेदार अपनी अपनी प्रजाओंको बहुत सताते रहते थे, चौथे तीर्थयात्रा करनेके लिए जानेवाले यात्रियोंसे वसूल किया जानेवाला 'कर' और वार्षिक 'जज़िया' प्रजाको बरबाद करनेके लिए पद पद पर अपना भयंकर रूप धारण किये खड़े ही हुए थे और पाँचवे सामान्य अपराधियोंको भी हाथ पैर काट डालनेकी, प्राण ले लेनेकी या इसी प्रकारकी अन्य क्रूर सजाएँ दी जाती थीं। इस प्रकार जिस प्रना पर चहुँ ओरसे भयंकर विपत्ति पड़ रही थी, उस प्रजाके लिए कैसे संभव था कि, वह सन्तोष पूर्वक आहार करती और सुखकी नींद लेती । जब हजारों कोस दूर होनेवाले युद्धका भी यहाँकी प्रजा पर
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