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________________ परिस्थिति । " पाठानदिगेर अत्याचारे भारत श्मशानावस्थाये प्राप्त हइल | जे साहित्यकानन नित्य नव नव कुसुमेर सौंदर्य ओ सौगन्धे आमोदित थाकित, ताहाओ विशुष्क हइल । स्वदेशहितैषिता, निःस्वार्थपरता, ज्ञान ओ धर्म, सकलेइ भारत हइते अन्तर्हित हइल । समग्र देश विषाद ओ अनुत्साहेर कृष्ण छायाय आवृत्त हइल | "" भाव इसका यह है कि, - पठानोंके अत्याचार से भारतकी अवस्था श्मशानसी हो गई। जो साहित्योद्यान - साहित्य बगीचा - सदैव नवीन नवीन पुष्पोंके सौंदर्य और सुगंधसे आमोदित रहता था वह भी शुष्क हो गया । स्वदेशहितैषिता, निःस्वार्थपरता और ज्ञान तथा धर्म सब कुछ भारत से अन्तर्धान हो गये । समस्त देश विषाद और अनुत्साहकी काली छायासे ढक गया । भारतवर्ष पठानोंके अत्याचारोंसे पहिले ही त्रस्त हो रहा था उसी समय ईस्वी सन्की चौदहवीं शताब्दिके अन्तर्मे, घटतेमें पूरी भारत पर और एक आफत आ खड़ी हुई । भारतवर्षकी असाधारण कीर्त्तिसे मध्य एशिया के समरकंद प्रदेशमें रहनेवाले तैमूरलंग को ईर्ष्या उत्पन्न हुई । इसलिए वह अपने राज्यसे सन्तुष्ट न हो कर भारतकी लक्ष्मीको भी अधिकृत करनेके लिए लालायित हो उठा। उसने चढाई की, भारतको लूटा, सतियोंको सतीत्वभ्रष्ट किया, गाँवके गाँव जला दिये और लोगोंको पशुओंकी भाँति तलवारके घाट उतारा और इस तरह उसने भारतकी प्रजाके कष्टोंको दुगना कर दिया । इसी लिए तो कहा है कि, - ' लोभाविष्टो नरो हन्ति मातरं पितरं तथा । ' अतः जो लोभवृत्ति मातापिताकी हत्या करा देती है उस लोभवृत्तिने तैमूरलंग से ऐसे क्रूर कर्म कराये, तो इसमें आश्चर्य ही क्या है ? कहा जाता है कि, तैमूरलंगने सिर्फ दिल्लीहीमें एक लाख 2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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